Happy New Year| Happy New Year Kyu Manate Hai | नव वर्ष क्यों मनाया जाता है

नव वर्ष क्यों और कब मनाया जाता है

हम सभी जानते है की नववर्ष को नया साल के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है इस पर्व अवसर पर  लोग अपने जीवन में एक नए दिन की शुरुआत करते है के लेकिन 1 जनवरी को  नववर्ष के रूप में मनाया जाता है लेकिन हमे यह नहीं पता की इस दिन की शुरुआत कब से हुई है इसलिए आज हम जानेंगे के इस नववर्ष की शुरुआत कब से हुई है। नव वर्ष क्यों मनाया जाता है|

Happy New Year| Happy New Year Kyu Manate Hai | नव वर्ष क्यों मनाया जाता है
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नववर्ष की शुरुआत कब हुई :-

नववर्ष की शुरुआत लगभग 4000 वर्ष पहले बेबिलीन नामक स्थान से शुरू हुआ था। और तब से लेकर आज तक 1 जनवरी को मनाया जाता है नववर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है  आज के समय कैलेंडर का प्रयोग किया जाता है जिसमे जनवरी से दिसंबर तक महीने होते है।जो आज भी वर्तमान में उपलब्ध है|

नववर्ष क्यों मनाया जाता:- 

इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर के रूप में हुई है। इस बार पारीक रोमन कैलेंडर का नया वर्ष 1 मार्च से शुरू होता है लेकिन रोमन के स्मार्ट जूलियस सीजर ने 46 वर्ष ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया था।उन्होंने जुलाई का महीना और इसके बाद अपने भतीजे के नाम पर अगस्त का महीना जोड़ दिया। तब से लेकर आज तक पुरे विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल के रूप में मनाया जाता है। ठीक उसी प्रकार अलग अलग अलग संस्कृति के अपने कैलेंडर और अपने नववर्ष होते है दुनिया के हर देश अलग अलग रूप में नया साल मनाते है।

इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार साल में 12 महीने होते है जिनकी शुरुआत जनवरी के 1st दिन से शुरू होता है इस दिन को नये साल के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के सभी देशो के तरह ही भारत में भी अनेक जगह नया साल इसी मनाया जाता है। इस तरह से भारत में नए साल खुशियाँ बाँटने और एक नए दिन के रूप में हैप्पी न्यू ईयर मनाया जाता है। ….

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आखिर नया साल 1 जनवरी से ही क्यों शुरू माना जाता है?

दुनिया के अधिकतर देश 1 जनवरी से नया साल मनाते हैं. लेकिन पहले 25 मार्च से नया साल शुरू होता था. इस नए साल को 1 जनवरी से मानने के पीछे हजारों साल पुरानी एक कहानी है. जानिए क्यों नए साल को 1 जनवरी से माना जाने लगा.

यूरोप और दुनिया के अधिकतर देशों में नया साल 1 जनवरी से शुरू माना जाता है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. और अभी भी दुनिया के सारे देशों में 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत नहीं मानी जाती है. 500 साल पहले तक अधिकतर ईसाई बाहुल्य देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता है. 1 जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत पहली बार 45 ईसा पूर्व रोमन राजा जूलियस सीजर ने की थी. रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन रहा था.

पृथ्वी और सूर्य की गणना के आधार पर रोमन राजा नूमा पोंपिलुस ने एक नया कैलेंडर लागू किया. यह कैलेंडर 10 महीने का था क्योंकि तब एक साल को लगभग 310 दिनों का माना जाता था. तब एक सप्ताह भी आठ दिनों का माना जाता था. नूमा ने मार्च की जगह जनवरी को साल का पहला महीना माना. जनवरी नाम रोमन देवता जैनुस के नाम पर है. जैनुस रोमन साम्राज्य में शुरुआत का देवता माना जाता था जिसके दो मुंह हुआ करते थे. आगे वाले मुंह को आगे की शुरुआत और पीछे वाले मुंह को पीछे का अंत माना जाता था. मार्च को पहला महीना रोमन देवता मार्स के नाम पर माना गया था. लेकिन मार्स युद्ध का देवता था. नूमा ने युद्ध की जगह शुरुआत के देवता के महीने से साल की शुरुआत करने की योजना की. हालांकि 153 ईसा पूर्व तक 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से नए साल का पहला दिन घोषित नहीं किया गया.

46 ईसा पूर्व रोम के शासक जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर एक नया कैलेंडर जारी किया. इस कैलेंडर में 12 महीने थे. जूलियस सीजर ने खगोलविदों के साथ गणना कर पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं. इसलिए सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन का कर दिया. साथ ही सीजर ने हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिन का किया जिससे हर चार साल में बढ़ने वाला एक दिन भी एडजस्ट हो सके.

साल 45 ईसा पूर्व की शरुआत 1 जनवरी से की गई. साल 44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर की हत्या कर दी गई. उनके सम्मान में साल के सातवें महीने क्विनटिलिस का नाम जुलाई कर दिया गया. ऐसी ही आठवें महीने का नाम सेक्सटिलिस का नाम अगस्त कर दिया गया. 10 महीने वाले साल में अगस्त छठवां महीना होता था. रोमन साम्राज्य जहां तक फैला हुआ था वहां नया साल एक जनवरी से माना जाने लगा. इस कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर था.

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पांचवी शताब्दी आते आते रोमन साम्राज्य का पतन हो गया था. यूं तो 1453 में ओटोमन साम्राज्य द्वारा पूरे साम्राज्य के राज को खत्म करने तक रोमन साम्राज्य चलता रहा लेकिन पांचवी शताब्दी तक रोमन साम्राज्य बेहद सीमित हो गया. रोमन साम्राज्य जितना सीमित हुआ ईसाई धर्म का प्रसार उतना बढ़ता गया. ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर से अपना नया साल मनाना चाहते थे.

ईसाई मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च को एक विशेष दूत गैबरियल ने ईसा मसीह की मां मैरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देना है. 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इसलिए ईसाई लोग इन दो तारीखों में से किसी दिन नया साल मनाना चाहते थे. 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है इसलिए अधिकतर का मत 25 मार्च को नया साल मनाने का था.

लेकिन जूलियन कैलेंडर में की गई समय की गणना में थोड़ी खामी थी. सेंट बीड नाम के एक धर्माचार्य ने आठवीं शताब्दी में बताया कि एक साल में 365 दिन 6 घंटे ना होकर  365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड होते हैं. 13वीं शताब्दी में रोजर बीकन ने इस थ्योरी को स्थापित किया. इस थ्योरी से एक परेशानी हुई कि जूलियन कैलेंडर के हिसाब से हर साल 11 मिनट 14 सेकंड ज्यादा गिने जा रहे थे. इससे हर 400 साल में समय 3 दिन पीछे हो रहा था. ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय लगभग 10 दिन पीछे हो चुका था. समय को फिर से नियत समय पर लाने के लिए रोमन चर्च के पोप ग्रेगरी 13वें ने इस पर काम किया.

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1580 के दशक में ग्रेगरी 13वें ने एक ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस के साथ एक नए कैलेंडर पर काम करना शुरू किया. इस कैलेंडर के लिए साल 1582 की गणनाएं की गईं. इसके लिए आधार 325 ईस्वी में हुए नाइस धर्म सम्मेलन के समय की गणना की गई. इससे पता चला कि 1582 और 325 में 10 दिन का अंतर आ चुका था. ग्रेगरी और लिलियस ने 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए. साल 1582 में 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर की तारीख रखी गई.

साथ ही लीप ईयर के लिए नियम बदला गया. अब लीप ईयर उन्हें कहा जाएगा जिनमें 4 या 400 से भाग दिया जा सकता है. सामान्य सालों में 4 का भाग जाना आवश्यक है. वहीं शताब्दी वर्ष में 4 और 400 दोनों का भाग जाना आवश्यक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लीप ईयर का एक दिन पूरा एक दिन नहीं होता है. उसमें 24 घंटे से लगभग 46 मिनट कम होते हैं. जिससे 300 साल तक हर शताब्दी वर्ष में एक बार लीप ईयर ना मने और समय लगभग बराबर रहे. लेकिन 400वें साल में लीप ईयर आता है और गणना ठीक बनी रहती है. जैसे साल 1900 में 400 का भाग नहीं जाता इसलिए वो 4 से विभाजित होने के बावजूद लीप ईयर नहीं था. जबकि साल 2000 लीप ईयर था. इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर है. इस कैलेंडर में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है. इसलिए नया साल 1 जनवरी से मनाया जाने लगा है. 

इस कैलेंडर को भी स्थापित होने में समय लगा. इसे इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 में ही अपना लिया था. जबकि जर्मनी के कैथोलिक राज्यों, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने 1583, पोलैंड ने 1586, हंगरी ने 1587, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश और डेनमार्क ने 1700,  ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752, चीन ने 1912, रूस ने 1917 और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया.

सन 1752 में भारत पर भी ब्रिटेन का राज था. इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में ही अपनाया था. ग्रेगोरियन कैलेंडर को अंग्रेजी कैलेंडर भी कहा जाता है. हालांकि अंग्रेजों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को 150 सालों से भी ज्यादा समय तक अपनाया नहीं था. भारत में लगभग हर राज्य का अपना एक नया साल होता है. मराठी गुडी पड़वा पर तो गुजराती दीवाली पर नया साल मनाते हैं. हिंदू कैलेंडर में  चैत्र महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता है. ये मार्च के आखिर या अप्रैल की शुरुआत में होती है. इथोपिया में सितंबर में नया साल मनाया जाता है. चीन में अपने कैलेंडर के हिसाब से भी अलग दिन नया साल मनाया जाता है.

लेकिन ग्रेगरी के कैलेंडर के साथ भी एक समस्या है. इस कैलेंडर में 11 मिनट का उपाय तो हर चार में से तीन शताब्दी वर्षों को लीप ईयर ना मानकर कर लिया. लेकिन 14 सेकंड का फासला अभी भी हर साल है. इसी के चलते साल 5000 आते-आते फिर से कैलेंडर में एक दिन का अंतर पैदा हो जाएगा. हो सकता है तब इस कैलेंडर की जगह समय गणना की कोई नई प्रणाली आए जो इस गणना को ठीक करे. लेकिन तब तक हम 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत की उम्मीद कर सकते हैं.

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भारत में एक नहीं, कई बार मनाया जाता है नया साल

भारत में पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों में आज बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है। सिख समुदाय के लोग बैसाखी को नए साल के रूप में मनाते हैं। वैसे तो अंग्रेजी कैलेंडर या ईसाई धर्म के कैलेंडर के अनुसार पूरी दुनिया एक जनवरी को नया साल मनाती है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां एक जनवरी के अलावा भी कई बार नया साल मनाया जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर अपनी संस्कृति और परंपराओं के आधार पर नया साल मनाया जाता है। भारत में कहीं सोलर कैलेंडर सिस्टम के आधार पर तो कहीं नए अनाज के कटने के मौके पर नए साल का जश्न मनाया जाता है। ऐसे में चलिए जा जानते हैं कि हमारे विविधताओं वाले भरे देश में कब-कब, कहां और कैसे नया साल मनाया जाता है।

1 जनवरी से ईसाई नववर्ष 

पूरी दुनिया समेत भारत में भी नए साल की शुरुआत एक जनवरी से ही मानी जाती है। पूरी दुनिया में इसका अलग ही जश्न देखने को मिलता है। 

हिंदू नववर्ष, नवसंवत्सर

हिंदू नववर्ष और नवसंवत्सर की शुरुआत चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मानी जाती है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी। साथ ही इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ये तिथि मार्च-अप्रैल में आती है। 

गुड़ी पड़वा, उगादि

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही मराठी नव वर्ष की शुरुआत होती है। गुड़ी पाड़वा और मराठी-पाडवा भी कहते हैं। इसके अलावा इसी दिन को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में 'उगादिके तौर पर मानते हैं। दक्षिण भारत के इन राज्यों उगादि को नए साल के रूप में मनाते हैं। 

नवरेह- कश्मीरी नववर्ष

नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है। ये पर्व चैत्र नवरात्र के पहले दिन मनाया जाता है। मुख्य रूप से ये त्योहार कश्मीर में मनाया जाता है। कश्मीरी पंडित बड़े उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते हैं। 

विषु- मलयालम नववर्ष

विषु पर्व को केरल में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। वहीं तमिलनाडु में इसे बिसु परबा के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, ये पर्व भी अप्रैल के महीने पड़ता है।  

बैसाखी

बैसाखी के त्योहार के दिन से सिख नव वर्ष की शुरुआत होती है। मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब और जम्मू इसका जश्न देखने को मिलता है। ये पर्व हर साल अप्रैल महीने में 13 या 14 तारीख को पड़ता है। 

बिहू

असम में बिहू के पर्व के साथ ही नए साल की शुरुआत मानी जाती है और जमकर इस त्योहार का जश्न मनाया जाता है। 

नवरोज

पारसी समुदाय नवरोज को नए साल के रूप में मनाता है। नवरोज को पारसी न्यू ईयर भी कहा जाता है। पारसी धर्म के लोग इसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। 

आषाढ़ी बीज 

आषाढ़ी बीज का त्योहार गुजरात के कच्छ क्षेत्र में कच्छी समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इसी दिन कच्छी समुदाय के लोगों के नए साल की शुरुआत होती है। 

हिजरी-इस्लामिक नववर्ष

इस्लामिक वर्ष की शुरुआत मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होती है। इस्लामिक धार्मिक त्योहार को मनाने के लिए हिजरी कैलेंडर का ही इस्तेमाल किया जाता है

 

भारतीय नववर्ष के दिन क्या खाया जाता है?

तिल गुड़ के लड्डू

भारत में नव वर्ष अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। सामान्यतः भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को माना जाता है। यह तारीख मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ती है। इसके अतिरिक्त भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तारीख को नववर्ष मनाया जाता है, लेकिन सबसे प्रचलित नववर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही माना जाता है। यह भारतीय नव वर्ष का प्रथम दिन होता है। इस दिन तिल-गुड़ के लड्डू खाये जाते हैं और तरह-तरह की अन्य मिठाईयां भी बनाई जाती हैं। 

सीख :-

नये वर्ष को अपने परिवार के साथ मनाएँ

नये वर्ष का सेलिब्रशन अपने परिवार के साथ सेलीब्रट करना चाहिए हमारे जीवन में परिवार से बढक़र कुछ नहीं होता है परिवार ही सब कुछ होता है।  हम सबसे ज्यादा अपने परिवार से प्रेम करते हैं और अपने बड़ेबुजुर्गों से  अच्छे संस्कार मिलते हैं जैसे चाचा, चाची,  दादा, दादी, ताऊ, ताई, भुआ, मामा,  मामी, भाई, बहिन,  नाना, नानी आदि से अच्छे अच्छे संस्कार मिलते हैं हम उन सभी को देखकर ही हम अपने भविष्य में आगे बढ़ पाते हैं और अपने विकाश के राह पर आगे बढने की शिक्षा मिलती है।  परिवार ही हमारी प्रथम पाठशाला है। नये साल का जश्न हम अपने परिवार साथ मनाते है और लेकिन कई लोग अपने काम के भागम दौड़ में परिवार को कम समय दे पाते हैं। या फिर कोई अपने परिवार से दूर भी रहता होगा लेकिन हमें अपने परिवार को थोड़ा सा समय निकाल कर उन्हें न्यू विश तो कर ही सकते हैं

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Milan Tomic

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