मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं, जानें धार्मिक, वैज्ञानिक कारण, कथा कहानी और पूजा विधि
मकर संक्रांति का महत्व ज्योवतिष, धार्मिक और वैज्ञानिक तीनों दृष्टि से अहम है। मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर करते हैं। धार्मिक कारणों से मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा का विशेष महत्वह माना गया है। वहीं सूर्य के उत्ता यण होने से वातावरण में ठंड कम होनी आरंभ हो जाती है। इन सब वजहों से मकर संक्रांति का त्यो हार बहुत ही महत्वैपूर्ण माना जाता है।
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जानिये मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं और जानें धार्मिक, वैज्ञानिक कारण, कथा कहानी और पूजा विधि |
मकर संक्रांति
क्यों मनाते हैं | Makar
Sankranti Kyu manate hai
सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो ज्योतिष में इस घटना को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है। पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं खगोलशास्त्र के मुताबिक देखें तो सूर्य देव जब दक्षिणायन से होकर उत्तरायण होते हैं वैज्ञानिक भाषा में पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है तब मकर संक्रांति मनाई जाती है तो इस अवसर को देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग त्यो हार के रूप में मनाते हैं। मकर संक्रांति का त्यो हार उत्तर भारत में हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
मकर संक्रांति
से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं क्या हैं?
ऐंसी मान्यता है कि मकर संक्रांति को खुलता है स्वर्ग का द्वार
इस दिन से धरती पर अच्छेप दिनों की शुरुआत मानी जाती है इसकी वजह यह है कि सूर्य इस दिन से दक्षिण से उत्तरी गोलार्ध में गमन करने लगते हैं। इससे देवताओं के दिन का आरंभ होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है। इसलिए इस दिन किया गया दान और पुण्य अन्य दिनों में किए गए दान पुण्य से कहीं अधिक फलदायी और लाभकारी होता है।
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देवी माँ गंगाजी भागीरथ से जुड़ी मकर संक्रांति की कहानी
शास्त्रों में बताया गया है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली देवी माँ गंगाजी भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जाकर मिली थीं और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति की प्रदान हुई थी इसीलिए इस दिन बंगाल के गंगासागर में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला भी इसी मान्यता के चलन में लगता है.
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं
सनातन धर्म की मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन जब भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं शनि देव घर में सूर्य देव के प्रवेश मात्र से शनि का प्रभाव क्षीण हो जाता है क्योंकि सूर्य के प्रकाश के सामने कोई नकारात्मकता नहीं टिक ही कहां सकती है मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की साधना और इनसे संबंधित दान करने से सभी शनि जनित दोष दूर हो जाते हैं.
जब दक्षिणायण देवताओं की रात और उत्तरायण दिन होता है
शास्त्रों के मतानुसार अनुसार सूर्य जब दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि कहा जाता है तथा उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है क्योंकि दक्षिणायन को नकारात्मकता कहा जाता है और अंधकार का प्रतीक माना जाता है उसके विपरीत उत्तरायण को हमेशा सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना जाता है तथा ऐसी भी मान्यता और प्रथा है कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर आते हैं एवं इसी मार्ग से पुण्यात्माएं अपना शरीर छोड़कर स्वर्ग लोग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं.
पुराणों में मकर संक्रांति की कथा और कहानी
मकर संक्रांति से ही जुड़ा है सूर्य शनि देव का वरदान काल
जब यमराज पिता सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर काफी दुखी हुए। तो फिर यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या करना प्रारंभ कर दिया लेकिन सूर्य देव ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जलाकर भस्म कर दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को काफी कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि देव को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य देव को समझाया। तो फिर सूर्य देव ने कहा कि जब भी वह शनि देव के दूसरे घर मकर में आएंगे तो शनि देव के घर को धन-धान्य से भर देंगे इस पर प्रसन्न होकर शनि देव ने कहा कि जो मकर संक्रांति को सूर्य देव की पूजा करेगा उसे शनि देव की दशा में कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।
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महाभारत कालीन भीष्म पितामाह ने चुना था देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का दिन
ये कहावत है कि मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह को त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था और गीता में बताया गया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में देह का त्याग करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं इसलिए इस पुण्यदायी दिवस को हर्षोल्लास से लोग मनाते हैं।
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मकर राशि में हुआ सूर्य का प्रवेश
कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा क्योंकि तिल के कारण ही शनि देव जी को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था इसलिए शनि देव को तिल अधिक प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य देव एवं शनि देव की पूजा का नियम शुरू हुआ।
मकर संक्रांति पर कुछ विशेष महत्व होते हैं
कहा जाता है कि बंगाल के गंगासागर में स्न्नान करने का बहुत महत्व है
ऐंसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्न्नान करने का बहुत महत्व है. एक और पौराणिक कहानी के अनुसार महाभारत कालीन भीष्म पितामह महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे और उन्होंने मकर संक्रान्ति पर पही अपने प्राण त्यागे थे एक और अन्य यह भी मान्यता है कि इस दिन मां यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था.
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मकर संक्रांति के दिन नदी में स्नान व दान का बेहद महत्व माना जाता है
पुराण के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने के दिन यानी मकर संक्रांति के दिन दान व पुण्य का बहुत महत्व होता है और मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दस हजार गौदान का फल प्राप्त होता है इस दिन ऊनी कपड़े कम्बल, तिल और गुड़ से बने व्यंजन व खिचड़ी दान करने पर ऐंसा माना जाता है कि जातक पर भगवान सूर्य देव एवं शनि देव की कृपा प्राप्त होती है लेकिन ये भी कहा गया है वैसे तो सूर्य के उत्तरायण होने वाले माह में किसी भी तीर्थ नदी या समुद्र में स्नान कर दान-पुण्य करके अपने कष्टों से मुक्ति पाया सकता है, लेकिन प्रयागराज संगम में स्नान का फल मोक्ष देने वाला होता है.
मकर संक्रांति दान और स्नारन का विशेष महत्व
शास्त्रों में
मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान
और दान का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन
बताया गया है ये भी मान्यसता है या यह कहा गया है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना
होकर वापस लौटता है।
महत्व बताएये कि मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
ये हम सभी जानते हैं कि हमारा देश कृषि पर निर्भर है तो मकर संक्रांति किसानों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है, इसी दिन सभी किसान अपनी फसल काटते है क्योंकि मकर संक्रांति भारत का सिर्फ एक ऐसा त्यौहार है माना जाता है जो हर साल 14 या 15 जनवरी को ही मनाया जाता है और यह वह दिन होता है जब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है तथा हिन्दूओं के लिए सूर्य एक रोशनी और ताकत और ज्ञान का प्रतीक होता है क्योंकि मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है, एक नए तरीके से काम शुरू करने का प्रतीक है तथा मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पर्यावरण अधिक चैतन्य रहता है यानि कि पर्यावरण में दिव्य जागरूकता होती है इसलिए जो लोग आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे है वे इस चैतन्य का लाभ उठा सकते है।
मकर संक्रांति का व्यवहारिक और वैज्ञानिक कारण
व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक करण- मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। ठंड की वजह से सिकुड़ते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां के पर्व त्योहार का संबंध काफी कुछ कृषि पर निर्भर करता है। मकर संक्रांति ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल, धन, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द घर ले आते हैं। किसानों का घर अन्न से भर जाता है। इसलिए मकर संक्रांति पर खरीफ की फसलों से पर्व का आनंद मनाया जाता है।
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मकर संक्रांति पूजा विधि
पूजा विधि इस
प्रकार है:- जो लोग इस असाधारण दिन में विश्वास रखते हैं, वे अपने घरों में मकर संक्रांति मनाते हैं।
वर्तमान समय के दौरान पूजा तकनीक नीचे प्रदर्शित की गई है
1 कुछ महत्व की बात के रूप में, पूजा शुरू करने से पहले, पुण्य काल मुहूर्त और महा पुण्य काल मुहूर्त का
पता लगाएं, और अपने प्रेम स्थान को साफ और कीटाणुरहित
करें। संयोग से, यह पूजा भगवान सूर्य के लिए की जाती है, इसलिए यह पूजा उन्हें समर्पित है।
2 - इसके बाद 4
गहरे और 4 सफेद स्टिक वाले लड्डू एक प्लेट में रख लें.
इसके अलावा थाली में कुछ नकदी भी रखें।
3 इसके बाद थाली में ये सामग्री चावल का आटा और
हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान
के पत्ते, जाल, फूल
और अगरबत्ती रख लें.
4 इसके बाद भगवान के प्रसाद के रूप में एक थाली
में काले रंग की लकड़ी और सफेद रंग की लकड़ी, कुछ
नकदी और मिठाइयां रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है.
5 इस प्रसाद को भगवान सूर्य को अर्पित करने के
बाद आरती की जाती है।
6 महिलाएं पूजा के दौरान अपना सिर ढककर रखें।
7 इसके बाद सूर्य मंत्र 'ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः' का लगभग 21 या
उससे अधिक बार जाप किया जाता है।
मकर संक्रांति पर कुछ प्रशंसक पूजा के दौरान 12 मुखी रुद्राक्ष भी पहनते हैं या पहनना शुरू करते हैं। इस दिन माणिक्य रत्न भी धारण किया जाता है।
मकर संक्रांति पूजा के लाभ
1 यह संज्ञान और
विशाल ज्ञान को कई स्तरों तक विस्तारित करता है, इसलिए इस पूजा को करने से आप उच्च जागरूकता का लाभ प्राप्त कर सकते
हैं।
2 पारलौकिक
प्रवृत्ति शरीर को उन्नत एवं शुद्ध करती है।
3. इस अवधि में
किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
4 यह जनसाधारण में धर्म और परलोक का प्रचार-प्रसार करने का कठोर अवसर है।
मकर संक्रांति मनाने की विधि
मकर संक्रांति के शुभ मौसम में धुलाई, अच्छे कार्य और नेक कार्य का अद्वितीय महत्व है। इस दिन लोग गुड़ और तिल का भोग लगाते हैं और पवित्र जलधारा में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित कर उनकी पूजा की जाती है और उनसे अपने अच्छे भविष्य की कामना की जाती है। इसके बाद गुड़, तिल, ढक्कन, फलियां आदि दी जाती हैं। इस दिन कई जगहों पर पतंगें भी उड़ाई जाती हैं। इसी तरह इस दिन लकड़ियों से बने पकवानों का सेवन किया जाता है। इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्य को भोग लगाते हैं और खिचड़ी विशेष रूप से दी जाती है. जिसके कारण इस उत्सव को खिचड़ी भी कहा जाता है। इसके अलावा, विभिन्न शहरी समुदायों में इस दिन को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। इस दिन पशुपालकों द्वारा फसलें भी एकत्र की जाती हैं।
भारत में मकर संक्रांति उत्सव और संस्कृति
भारत में मकर
संक्रांति को प्रत्येक राज्य में असाधारण उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालाँकि, बेहतर जगहों पर इसे विभिन्न नामों और
रीति-रिवाजों के साथ सराहा जाता है।
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• उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
में इसे खिचड़ी के उत्सव के रूप में जाना जाता है। इस दिन स्वर्गीय जलमार्गों में
डुबकी लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस अवसर पर, प्रयाग और इलाहाबाद में एक प्रमुख माघ मेला शुरू होता है। त्रिवेणी
के अलावा उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़ मुक्तेश्वर और बिहार के पटना जैसे कई
स्थानों पर भी भारी बारिश हो रही है।
• पश्चिम बंगाल: बंगाल में गंगा सागर में लगातार
एक बड़ा मेला लगता है। जहां यह माना जाता है कि भगवान भागीरथ के 60,000 पूर्वजों
के शेष भाग निर्जन थे और नीचे गंगा की धारा में भीग गए थे। इस मेले में देश भर से
अनगिनत यात्री भाग लेते हैं।
• तमिलनाडु: तमिलनाडु में इसे पोंगल उत्सव के रूप
में मनाया जाता है, जो पशुपालकों के एकत्रीकरण दिवस की शुरुआत का
प्रतीक माना जाता है।
• आंध्र प्रदेश: कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में
उन्हें मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। जिसे यहां 3 दिवसीय उत्सव पोंगल के
रूप में मनाया जाता है। यह आंध्र प्रदेश के लोगों के लिए एक बड़ा अवसर है। तेलुगु
इसे 'पेंडा पांडुगा' कहते हैं जिसका अर्थ है विशाल उत्सव।
• गुजरात: गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण
नाम से मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता आयोजित की
जाती है, जिसमें वहां के सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते
हैं। यह गुजरात में एक असाधारण बड़ा उत्सव है। इस दौरान 2 दिन का सार्वजनिक उत्सव
भी होता है.
• बुन्देलखण्ड: बुन्देलखण्ड में विशेषकर मध्य
प्रदेश में मकर संक्रान्ति का उत्सव सकरात नाम से जाना जाता है। यह उत्सव मध्य
प्रदेश के साथ-साथ बिहार,
छत्तीसगढ़, झारखंड
और सिक्किम में असाधारण उत्सव और मिठाइयों के साथ मनाया जाता है।
• महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में संक्रांति के समय, तिल और गुड़ से बने व्यंजनों का व्यापार होता
है, लोग तिल के लड्डू देते हैं और एक दूसरे को
"जब तक गुल घ्या, गोड़ बोला" कहते हैं। महाराष्ट्र में
महिलाओं के लिए यह एक अनोखा दिन है। इस अवसर पर विवाहित महिलाएँ "हल्दी
कुमकुम" नाम से आगंतुकों का स्वागत करती हैं और उन्हें कुछ बर्तन उपहार में
देती हैं।
• केरल: केरल में इस दिन, लोग 40 दिनों के समारोहों को एक प्रमुख उत्सव
के रूप में मनाते हैं, जो सबरीमाला में समाप्त होता है।
• उड़ीसा: हमारे देश में असंख्य आदिवासी
संक्रांति के आगमन पर अपना नया साल शुरू करते हैं। सभी लोग एक साथ घूमते और खाते
हैं। उड़ीसा के भुया आदिवासी अपनी माघ यात्रा में भाग लेते हैं, जिसमें घर में बनी चीजें खरीदने के लिए उपलब्ध
होती हैं।
• हरियाणा: यह मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश
में प्रचलित है।
• पंजाब: पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से मनाया
जाता है, जो सभी पंजाबियों के लिए विशेष महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी उपज इकट्ठा करना शुरू
कर देते हैं और इसे पसंद करते हैं।
• असम: असम के शहरों में माघ बिहू का गायन किया
जाता है।
• कश्मीर: कश्मीर में इसे शिशुर संक्रांत के नाम से जाना जाता है।
(अपरिचित) विदेशों
में मकर संक्रांति के त्यौहार के नाम
मकर संक्रांति
भारत के अलावा अन्य देशों में भी प्रसिद्ध है लेकिन वहां इसे दूसरे नाम से जाना
जाता है।
• नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहा जाता है।
नेपाल के कुछ हिस्सों में इसे मगही भी कहा जाता है।
• थाईलैंड में इसे सोंगक्रान नाम से सराहा जाता
है।
• म्यांमार में इसे थिंगयान के नाम से जाना जाता
है।
• कंबोडिया में इसे मोहा संगक्रान नाम से सराहा
जाता है।
• श्रीलंका में इसे उलावर थिरुनल के नाम से जाना
जाता है।
• लाओस में इसे पाई मामा लाओ के नाम से जाना जाता
है।
वैसे तो मकर
संक्रांति को हर जगह अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, लेकिन इसके पीछे का मकसद भी कुछ ऐसा ही है और
वह है सौहार्द और शांति। सभी लोग इसे अंधकार से प्रकाश के उत्सव के रूप में मनाते
हैं।
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