बसंत पंचमी क्यों मनाते हैं।
(जानें इसका इतिहास)
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बसंत पंचमी कब मनाई जाती है।
हर साल बसंत पंचमी हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी
तिथि को बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाई जाती है। इसे माघ पंचमी भी कहते हैं।
इस महीने में प्रकृति अपनी खूबसूरती बिखेरती है। वसंत ऋतु में वृक्षों में नई
कलियाँ निकलने लगती हैं। तरह-तरह के आकर्षक फूलों से पृथ्वी प्राकृतिक रूप से
सुशोभित है। पीली सरसों के फूल खेतों में चादर की तरह बिछ जाते हैं और कोयल की कूक दसों दिशाओं में
गुंजायमान हो जाती हैं।
बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?
वसंत पंचमी, वसंत के आगमन का जश्न
मनाने का दिन है, ये देवी माँ सरस्वती की पूजा
का एक विशेष त्योहार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही माँ सरस्वती की रचना
भगवान ब्रह्मा ने की थी। इस दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था।
तभी से वसंत पंचमी का यह पर्व माँ सरस्वती की आराधना का
प्रमुख पर्व माना जाता है।
बसंत पंचमी पर कैसे की जाती है देवी माँ सरस्वती की पूजा?
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। इस दिन
प्रात: काल अर्थात दोपहर से पहले का समय देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती
है। भक्त देवी को सफेद कपड़े और फूलों से सजाते हैं, क्योंकि सफेद रंग
देवी माँ सरस्वती का पसंदीदा रंग माना जाता है। आमतौर पर देवी माँ सरस्वती को दूध
और सफेद तिल से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में बांटा जाता
है। उत्तर भारत में, वसंत पंचमी के शुभ दिन
देवी माँ सरस्वती को पीले फूल चढ़ाए जाते हैं, क्योंकि साल के इस समय सरसों के फूल और गेंदे के फूल
बहुतायत में होते हैं। माँ सरस्वती को विद्या और
ज्ञान की देवी माना जाता है। इस दिन माँ सरस्वती से ज्ञान, विद्या, कला और ज्ञान का वरदान
मांगा जाता है।
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• सबसे पहले सुबह जल्दी
उठकर घर की साफ-सफाई कर पूजा सामग्री एकत्र कर लें।
• वसंत पंचमी के दिन पूजा
से पहले नहाते समय शरीर पर नीम और हल्दी का लेप लगाएं।
• स्नान करने के बाद पूजा
का संकल्प लेते हुए सूर्य देव को जल अर्पित करें और मन ही मन अपने इष्टदेव की पूजा
करें।
• सूर्यदेव को जल देने के
बाद माँ सरस्वती का प्रिय रंग पीला या सफेद वस्त्र धारण करें।
• माँ सरस्वती की पूजा
करने से पहले माँ सरस्वती की प्रतिमा को पूजा स्थान के फर्श पर स्थापित करें।
इसके आगे भगवान गणेश की मूर्ति भी स्थापित करें।
• देवी माँ सरस्वती और भगवान
गणेश की मूर्ति स्थापित करने के साथ ही माता की प्रिय वस्तु जैसे किताब, कलम, वीणा या कोई कलाकृति भी
रखें।
• माँ सरस्वती की पूजा
में पूजा की थाली में हल्दी, कुमकुम, चावल, गंगाजल और पीले रंग के
फूल रखें।
• गणेश जी की पूजा करने के
बाद माता को पीले या सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें।
• वस्त्र चढ़ाने के बाद
माता को पीला तिलक लगाएं और पीले फूल अर्पित करते हुए उन्हें सारी सामग्री अर्पित
करें।
• अंत में माँ सरस्वती पूजा
करते समय इस मंत्र का जाप करें।
मंत्र
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
बसंत पंचमी से जुड़ी रोचक खास बातें।
• पूरे वर्ष को 6 ऋतुओं में
बांटा गया है, जिसमें बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, पतझड़ ऋतु और शीत ऋतु
शामिल हैं। सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है, इसलिए इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है।
• माघ मास के शुक्ल पक्ष की
पंचमी तिथि यानी पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है।
• पंचमी तिथि वसंत ऋतु के
आगमन की सूचना देती है।
• आज का दिन ज्ञान या
विद्या आरंभ करने या किसी नए गुण और कला की शुरुआत करने के लिए बहुत शुभ माना जाता
है।
बसंत पंचमी पर क्या करें और क्या न करें
बसंत पंचमी के दिन कुछ कार्यों की विशेष रूप से मनाही होती है। जैसे बसंत
पंचमी का यह पर्व प्रकृति की सुंदरता को दर्शाता है। इसलिए इस दिन भूल से भी
पेड़-पौधों को नहीं काटना चाहिए और न ही उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहिए। साथ ही इस
दिन स्नान करने के बाद माँ सरस्वती की पूजा करें और
उसके बाद ही कुछ ग्रहण करें.
क्या नहीं करना है...
• बसंत पंचमी के दिन बिना
नहाए कुछ भी न खाएं।
• इस दिन काले रंग के
वस्त्र न पहनें।
• बसंत पंचमी के दिन
मांस-मंदिर का सेवन न करें।
• इस दिन पेड़-पौधों की
छंटाई न करें।
क्या करें...
• बसंत पंचमी को अबूझ
मुहूर्तों में से एक माना गया है, ऐसे में आप बिना मुहूर्त
देखे इस दिन कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं।
• बसंत पंचमी के दिन सुबह
उठते ही अपनी हथेलियों को जरूर देखें। कहा जाता है कि हमारी हथेलियों में माँ सरस्वती का वास
होता है।
• प्रात: स्नान के बाद माँ सरस्वती का ध्यान
करें।
• बसंत पंचमी के दिन शिक्षा
से जुड़ी चीजों का दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी।
• इस दिन शिक्षा से जुड़ी
चीजों और अपनी किताबों की पूजा करें। इससे पढ़ाई के प्रति आपका फोकस और एकाग्रता
बढ़ती है।
बसंत पंचमी का इतिहास क्या है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा को लेकर एक
बड़ी ही रोचक कहानी है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने जब धरती पर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और इंसानों की रचना की, उसके बाद जब वे दुनिया
में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सिर्फ सुनसान जगह ही दिखाई देती है। माहौल एकदम
शांत रहता है जैसे किसी में आवाज ही न हो। यह सब
देखकर भी ब्रह्मा जी असंतुष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने
कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़कते हैं। कमंडल से पृथ्वी पर गिरने वाले जल से पृथ्वी
पर कंपन होता है और चतुर्भुज सुंदर स्त्री के रूप में एक अद्भुत शक्ति प्रकट होती
है। उस देवी के एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा और दूसरे हाथ में
पुस्तक और माला है।
बसंत पंचमी पर पीले रंग के वस्त्र क्यों पहने जाते हैं?
पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने माघ शुक्ल पंचमी को पीताम्बर
धारण कर देवी माँ सरस्वती की पूजा की थी। कहा जाता है कि तब से बसंत पंचमी पर
माँ सरस्वती पूजा की प्रथा चली आ रही है और इस दिन पीले रंग के
कपड़े पहनने की प्रथा शुरू हुई।
बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है। यह दिन माँ सरस्वती की आराधना का दिन
है। आज का दिन ज्ञान या शिक्षा की शुरुआत करने या किसी नए गुण और कला की शुरुआत
करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ के लिए
महत्वपूर्ण है, जो छोटे बच्चों को
औपचारिक शिक्षा की दुनिया से परिचित कराने की एक रस्म है।
वसंत पंचमी पर क्यों की जाती है भगवान शिव की पूजा?
ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को धन और
समृद्धि की देवी होने का आशीर्वाद दिया था। यही कारण है कि पार्वती मन को नील
सरस्वती भी कहा जाता है। यही वजह है कि वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती के साथ शिव की भी
पूजा की जाती है।
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