Fundamental of Computer
Unit-V
![]() |
fundamental-of-computer-unit-V |
PROGRAMMING PLANNING
Ø प्रोग्रामिंग
से आशय
किसी यूजर द्वारा किसी कार्य विशेष को कम्प्यूटर द्वारा कराने तथा करने के लिए निर्देशों के समूह को क्रमबद्ध करके कम्प्यूटर को समझ में आने वाली भाषा में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को प्रोग्रामिंग कहा जाता है।
§ प्रोग्रामिंग
में ध्यान रखने योग्य बातें
किसी कार्य विशेष को करने के लिए प्रोग्राम कई प्रकार से तैयार किए जा सकते है। प्रोग्राम तैयार करने हतु विभिन्न निर्देशों के लिए विशेष का प्रयोग किया जाता है। ये विशेष शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ये विशेष शब्द कमाण्ड कहलाते हैं।
प्रोग्राम में निर्देश उसी क्रम में लिखे जाते है। जिस क्रम से वह कार्य संपन्न होता है।
प्रोग्राम कम्प्यूटर को समझ में आने वाली भाषाओं अर्थात साफ्टवेयर जिनमें कि प्रोग्रामिंग करने की सुविधा उपलब्ध है में लिखा जाता है।
§ प्रोग्राम
के लक्षण
किसी भी उच्चकोटि के प्रोग्राम में निम्नलिखित लक्षण उपयुक्त होते हैं।
1. शुद्धता (Accuracy)- प्रोग्राम में लिखे गए निर्देश तथा प्रोग्राम से प्राप्त होने वाला परिणाम पूर्ण रूप से सत्य होना चाहिए। अगर किसी इनपुट से गलत परिणाम प्राप्त होता है तो प्रोग्राम पर कार्य करने वाला यूजर निश्चित ही यह जान ले कि उससे डाटा input करने में कोई गलती हुई है। क्योंकि सही इनपुट से ही सही परिणाम होता है।
2. विश्वसनीयता (Reliability)- User द्वारा जब प्रोग्राम बनाया जाता है तो उसमें कई प्रकार की गलतियाँ
होती है। जिसमें प्रोग्राम ठीक ढंग से कार्य नही कर पाता है। अतः प्रोग्राम की Reliability के अंतर्गत User
द्वारा
प्रोग्राम को Create करते समय यदि कोई गलती करता हैं तो उसे उस गलती से सम्बंधित स्पष्ट Message प्राप्त होना चाहिए जिससे User
उस
Massage को
पढकर अपनी गलती को ठीक करके अपना कार्य सही ढंग से कर सके।
3. क्षमता (Efficiency) - जब प्रोग्राम User
द्वारा
बनाया जाता है तो वह प्रोग्राम विभिन्न Resources
से
प्राप्त Data के
Management के
लिए उपयूक्त होना चाहिए।
4.
प्रयोग करने में सुगम (Easy of
Use)- User द्वारा प्रोग्राम बताते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह प्रोग्राम यदि कोई अन्य User द्वारा Use किया
जा रहा है। तो उस User का
प्रोग्राम को पढते समय कोई समास्या का सामना न करना पड़े तथा दिए गए निर्देष इस प्रकार व्यवस्थित होने चाहिए कि प्रयोगकर्ता को इस पर कार्य करने में समास्याओं का सामना न करना पड़े। प्रोग्राम को प्रयोग करने में समस्त सम्भावित समस्याओं को हल करके कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सहायता प्रयोगकर्ता को प्रोग्राम में ही उपलब्ध होनी चाहिऐ।
5.
पठनीयता (Readability)- प्रोग्राम की पठनीयता से तात्पर्य हैं कि प्रयोगकर्ता को प्रोग्राम पर कार्य करते समय विभिन्न परिवर्तनांको के लिए स्पष्ट सूचनाए प्राप्त हो, अर्थात् यदि प्रोग्राम में किसी स्थान पर Name Input करना हैं तो प्रोग्राम में उसका परिवर्तनांक नाम अथवा इससे मिलता जुलता होना चाहिए ताकि प्रयोगकर्ता यह समझ सके कि उसे यहां पर नाम इनपुट करना हैं।
Ø कम्प्यूटर
प्रोग्रामिंग किस प्रकार की जाती है?
कम्प्यूटर के कार्य करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है। कम्प्यूटर में अपनी समृति तो होती है। परन्तु बंद्धि नहीं होती। कम्प्यूटर मात्र वही कार्य करता है, जिसका कि उसे निर्देश दिया जाता है। अर्थात कम्प्यूटर को कार्य की रूपरेखा क्रमबद्ध निर्देशों अथवा प्रोग्राम द्वारा दी जाती हैं। प्रोग्राम कम्प्यूटर में की बोर्ड पर टाइप करके फीड किया जाते हैं। प्रोग्राम में कम्प्यूटर को क्या-क्या, किस प्रकार करना हैं, सह स्पष्ट एवं क्रमबद्ध रूप में लिखा जाता है।
§ प्रोग्रामिंग
में ध्यान रखने योग्य बातें -
1. किसी कार्य विशेष के लिए प्रोग्राम कई प्रकार से तैयार किया जा सकता है।
2. प्रोग्राम तैयार करने हेतु विभिन्न निर्देश के लिए शब्दो का प्रयोग किया जाता है। ये विशेष शब्द कमाण्ड कहलाते हैं।
3. प्रोग्राम में निर्देश उसी क्रम से वह कार्य सम्पन्न होता हो।
4. प्रोग्राम कम्प्यूटर की समझ में आने वाली भाषाओं अर्थात Language
अथवा
उन साफ्टवेयर्स, जिनके कि प्र्रोग्रामिंग करने की सुविधा उपलब्ध हैं में लिखा जाता हैं।
Ø कम्प्यूटर
User
की भाषा को किस प्रकार समझा है?
कम्प्यूटर केवल मशीन भाषा समझता हैं। विभिन्न प्रोग्रामिंग भाषा में लिखे गए प्रोग्राम में निर्देशों
को मशीन भाषा में परिवर्तित करके कम्प्यूटर के माइक्रोसेसर में भेजा जाता है। तभी कम्प्यूटर इन निर्देशों का पालन करके उपर्युक्त परिणाम प्रस्तुत करता है। माषा मात्र बायनरी अंको अर्थात 9 से 1 के समुहों से बनी होती है जिसे कम्प्यूटर का माइक्रोप्रोसेसर सीधे समझ सकता है।
जब हम कम्प्यूटर को कोई भी निर्देश किसी इनपुट के माध्यम से देते है तो कम्प्यूटर स्वतः इन निर्देशों को ASCII कोड
में परिवर्तित कर सकता है। निर्देश
देने के लिए हमें सामान्यतः अक्षरों, संख्याओं एवं संकेतो की कीज (Keys) को की बोर्ड के माध्यम से दोना होता है। और कम्प्यूटर स्वतः ही इसे अपनी भाषा में परिवर्तित कर लेता है।
Ø कम्प्यूटर
को निर्देश किस प्रकार से दिये जाते हैं?
कम्प्यूटर को निर्देश योजनाबद्ध रूप में अत्यन्त स्पष्ट भाषा में एवं विस्तार से देना अत्यन्त आवश्यक होता है। कम्प्यूटर को कार्य विशेष करने के लिए एक प्रोग्राम बनाकर देना होता है। दिया गया प्रोग्राम जितना स्पष्ट, विस्तृत ओर सटीक होगा, कम्प्यूटर उतने ही सुचारू रूप से कार्य करेगा, उतनी ही कम गलतियां करेगा और उतने ही सही उत्तर देगा। यदि प्रोग्राम अस्पष्ट होगा और उसमें समुचित विवरण एवं स्पष्ट निर्देश नहीं होंगे तो यह सम्भव है कि कम्प्यूटर बिना परिणाम निकाले ही गणना करता रहै अथवा उससे प्राप्त परिणाम अस्पष्ट और निरर्थक हों। अतः प्रोग्राम अत्यन्त सावधानी और एकाग्रचित होकर तैयार करना चाहिए। कम्प्यूटर की सम्पूर्ण कार्यक्षमता प्रोग्राम बनाने वाले व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर होती है।
कम्प्यूटर में अपनी कोई बुद्धि नहीं होती। यह एक मस्तिष्क रहित एवं अत्यंत आज्ञाकारी मशीन हैं। यदि उसे कोई निर्देश नहीं दिया जाता अथवा अस्पष्ट निर्देश दिया जाता है तब भी वह कोई आपत्ति नहीं करता और दिए गए निर्देशानुसार ही कार्य करता है। अतः प्रोग्राम बनाते समय अत्यन्त सावधानी बरतनी पड़ती है।
कम्प्यूटर के लिए कोई भी प्रोग्राम बनाते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है-
1. समस्या का सावधानीपूर्वक अध्यन करके निर्देशे को निश्चित क्रम में क्रमबद्ध करना।
2. निर्देश इस प्रकार लिखना कि उनका अक्षरश पालन करने पर समस्या का हल निकल सके।
3. प्रत्येक निर्देश एक निश्चित कार्य करने के लिए हो।
प्रोग्राम में दिए जाने वाले निर्देशों को एक प्रवाह तालिका के रूप में प्रस्तुत करना उचित होता है। इसमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि कम्प्यूटर को कब और क्या करना है। एवं उसे विभिन्न क्रियाएं किस क्रम में करनी हैं। सामान्यतः प्रोग्राम को उपर से नीचे की ओर प्रवाह चित्र के रूप में दर्शाया जाता है। एवं जहां तर्क आदि करना होता हैं वहां यह दो भागों में विभक्त कर दिया जाता है।
प्रोग्राम में निर्देशों को कम्प्यूटर की समझ में आने वाली भाषा में लिखना आवश्यक होता है, ताकि कम्प्यूटर प्रदत्त निर्देशों को समझ सके और उनके अनुसार कार्य करके वांछित परिणाम प्रस्तुत कर सके। एक बार प्रोग्राम को कम्प्यूटर भाषा में लिखने के बाद उसे कम्प्यूटर की समृति में अर्थात फ्लापी, मेगनेटिक टेप आदि में स्टोर कर दिया जाता है। साथ ही समस्या को हल करने के लिए आवश्यक डाटा भी कम्प्यूटर की इनपुट यूनिट को प्रदान किया जाता है। अब कम्प्यूटर उस प्रोग्राम में प्राप्त परिणामों को मानीटर स्क्रीन पर प्रदर्षित करने अथवा फ्लोपी, हार्डडिस्क या मेगनेटिक टेप पर स्टोर कर निर्देश दिए गए हैं तब कम्प्यूटर प्राप्त परिणाम को वही स्टोर कर देता है।
Ø एल्गोरिथ्म
पारिभाषिक शब्दों में किसी गणितीय समस्या अथवा डाटा को इस प्रकार विश्लेषित करना जिससे कि वह कम्प्यूटर के लिए इनपूट बन सके और कम्प्यूटर उपलब्ध डाटा को प्रयोग में लेकर गणितीय समस्या का उचित हल प्रस्तुत कर सकें, एल्गोरिथ्म कहलाती है।
§ एल्गोरिथ्म
की विशेषताऐं
एल्गोरिथ्म सरल एवं निर्देशों की एक निश्चित श्रृंखला है, जिनका पालन कर किसी समस्या को हल किया जाता है एल्गोरिथ्म की निम्नलिखित विशेषताऐं कहलाती है।
1 परिमितता (Finiteness) -
एल्गोरिथ्म में विभिन्न चरणों में बटे निर्देशों की श्रृंखला परिमित होनी चाहिए। अर्थात एल्गोरिथ्म एक निश्चित चरणों के बाद समाप्त होनी चाहिए।
2 स्पष्टता (Clearity) -
एल्गोरिथ्म के प्रत्येक पद स्पष्ट होने चाहिए अर्थात् उनमें एक साथ दो अर्थ नहीं निकलना चाहिए।
3 प्रभावशाली (Effectiveness) – निर्देश प्रभावी एवं कम से कम निश्चित समय में कार्य कर लेने योग्य होने चाहिए।
4 इनपुट (Input)-
उपयोग में आने वाले विभिन्न डाटा एवं आंतरिक मान एल्गोरिथ्म के प्रारंभ में लिखना चाहिए।
5 आउटपुट (Output)- एल्गोरिथ्म में कम से कम एक या अधिक आवश्यकतानुसार आउटपुट तथा संपूर्ण क्रिया के अंत में परिणाम होना चाहिए।
Ø एल्गोरिथ्म
का परिचय
किसी समस्या को हल करने के लिए डाटा के साथ साथ निर्देशों की एक श्रृंखला की भी आवश्यकता होती है कम्प्यूटर (Data) केवल वही कार्य करता है जिस कार्य के लिए उसे निर्देशित किया जाता है कम्प्यूटर उपयोगकर्ता को यह नहीं बता सकता कि किसी समास्या का हल किस प्रकार किया जाता है यदि कम्प्यूटर उपयोगकर्ता अथवा प्रोग्राम को किसी गणना या समस्या का हल करने की विधि का ज्ञान नहीं है तब प्रोगामर कम्प्यूटर को उस समस्या को हल करने के लिए निर्देशित नहीं कर सकता है अतः किसी समस्या को हल करने के लिए कम्प्यूटर पर क्रमबद्ध समूह दिया जाता है।
किसी समस्या को हल करने के लिए कम्प्यूटर पर क्रमबद्ध निर्देशों का समूह कम्प्यूटर प्रोग्राम कहलाता है यह कम्प्यूटर प्रोग्राम डाटा प्रोसेसिंग हतु डाटा के साथ भेजा जाता है प्रोग्राम डाटा को पंढता है तथा निर्देशों के अनुरूप इसे मेनिपुलेट करता है तथा आउटपुट में प्रदर्शित करता है जो कि दी गई समस्या का हल होता है।
अतः वास्तविक कम्प्यूटर प्रोग्राम किसी कम्प्यूटर भाषा में लिखने के पूर्व समस्या को हल करने की विधि को सरल निर्देशों एवं वाक्यों के रूप में लिखा जाता है। यही सरल निर्देशों एवं वाक्यों का समूह जिनका पालन कर किसी समस्या विशेष का हल निकाला जाता है। एल्गोरिथ्म कहलाता है। कम्प्यूटर पर प्रोग्राम लिखने से पूर्व एल्गोरिथ्म लिखना एक महत्वपूर्ण पद है। एक बार किसी समस्या को हल करने करने के लिए सही सही एल्गोरिथ्म का निधारण हो जाए तब इस बात का निर्धारण भी आवश्यक है। इसे कितने संसाधनों की आवश्यकता होगी, क्योंकि यदि कोई एल्गोरिथ्म सही है लेकिन समस्या को हल करने के लिए अत्यधिक समय लगता है, तब इस एल्गोरिथ्म का कोई एल्गोरिथ्म का कोई महत्तव नहीं होगा। इसी प्रकार किसी एल्गोरिथ्म के लिए अधिक मेमोरी की आवश्यकता हो तो यह भी उपयागी नहीं होगी।
Fundamental of Computer Unit-I
Fundamental of Computer Unit-II
Fundamental of Computer Unit-III
Fundamental of Computer Unit-IV
उदाहरण - माना कि छ आकार का संख्यात्मक मानों का एक ऐरे मेमोरी में है तब P की स्थिति एवं ऐरे A के सबसे छोटे एलिमेंन्ट MIN का मान ज्ञात करने के लिए एल्गोरिथ्म निम्नलिखित प्रकार से हैं।
उदाहरण - माना कि MXP आकार का ऐरे A है और PXN आकार का B ऐरे है। यह एल्गोरिथ्म MXN
आकार
के ऐरे C
में
ऐरे A और
B के गुणनफल को स्टोर करता है।
Step 1 :
Repeat Step 2 to 4 for I=1 to M
Step 2 :
Repeat Step 3 to 4 for J=1 to N
Step 3 :
Set c [I,J] = 0 Initializes c [I,J]
Step 4 :
Repeat for K= 1 to P :
[End of
Inner Loop]
[End of Step 2 Inner Loop]
[End of Step 1 Outer Loop]
Step 5 : Exit
अतः उपरोक्त एल्गोरिथ्म के लिए काम्लेक्सिीटी निम्नलिखित होगी-
C=M.N.P.
एल्गोरिथ्म विश्लेषण
एल्गोरिथ्म का पूर्णरूप से अध्ययन ही एल्गोरिथ्म विश्लेषण कहलाता है। इसके अंतर्गत किसी भी समस्या के समाधान के लिए एल्गोरिथ्म का निर्धारण किया जाता है तथा उसकी निपुणताः की जाँच की जाती है। एल्गोरिथ्म के क्रियान्वयन के लिए विभिन्न मानवीय एवं कम्प्यूटर संसाधनों जैसे - सी.पी.यू. जो ऑपरेशन को प्रदर्षि करता है एवं समय, जगह और मैमोरी जो प्रोग्राम और डाटा को सुरक्षित रखता है, इत्यादि की आवष्यकता होती है। एल्गोरिथ्म विष्लेषण अथवा विष्लेषण प्रदर्शन में, एल्गोरिथ्म के किसी टास्क के आवष्यक सही समय की गणना एवं लगने वाली मेमोरी का ज्ञान होना आवष्यक है। एल्गोरिथ्म विशलेषण किस प्रकार किया जाए, इसका ज्ञान होना भी आवष्यक होता है।
1. टाईम काम्प्लेक्सिटी
2. मैमोरी आवष्यकता अर्थात स्पेस काम्लेक्सिटी
3. प्रोग्रामिंग आवश्यकता।
प्रोग्रामिंग आवश्यकता का विश्लेषण करना कठिन है इसलिए टाइम काम्लेक्सिटी तथा मैमोरी आवष्यकता का विश्लेषण कर काम्लेक्सिटी ज्ञात का ली जाती है। टाइम काम्लेक्सिटी मैमोरी आवश्यकता अर्थात स्पेस काम्लेक्सिटी से अधिक महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि जब मैमोरी टाइम काम्लेक्सिटी से अधिक तेजी से नहीं बढती तब एल्गोरिथ्म का दूसरे शब्दों में किसी भी एल्गोरिथ्म के लिए विश्लेषण कर लिया जाता है। अर्थात एल्गोरिथ्म क्रियान्वित होने के लिए लगने वाले कुल मैमोरी स्थानों की आवश्यकता की गणना टाइम विश्लेषण की अपेक्षा आसान है। स्थान विश्लेषण करते समय स्वंय एल्गोरिथ्म को भंडारित होने के लिए लगने वाले मैमोरी स्थानों की आवश्यकता की गणना नहीं की जाती सिर्फ डाटा मानों को भंडारित करने के लिए लगने वाली मैमोरी स्थानों की गणना की जाती है। बाइनरी सर्च विधि में O(n) मैमोरी स्थानों की आवश्यकता होती है।
§ टाइम
काम्लेक्सिटी
एल्गोरिथ्म की टाइम काम्लेक्सिटी समय की वह मात्रा है। जो इसे पूर्ण करने हेतु रन करने में उपयोग होती है। किसी एल्गोरिथ्म को पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने के लिए जितना कम्प्यूटर समय आवश्यक होता है। वह उस एल्गोरिथ्म
की टाइम काम्लेक्सिटी
कहलाती
है।
एल्गोरिथ्म की टाइम काम्लेक्सिटी में एल्गोरिथ्म के प्रत्येक चरण को क्रियान्वित होने में प्रयोग होने वाले समय का ज्ञान होना आवश्यक होता है। जो कि अत्यंत दुष्कर एवं श्रम डाटा की मात्रा पर भी निर्भर करता है। जैसे- यदि कोई गणना लूप के अन्दर होती है तब इस गणना के पूरा होने में प्रयूक्त समय लूप के दुहराव पर निर्भर करता है।
§ स्पेस
काम्प्लेक्सिटी
एक एल्गोरिथ्म की स्पेस काम्प्लेक्सिटी मैमोरी की वह मात्रा है जिसकी आवष्यकता प्रोग्राम के अंत तक रन करने के लिए होती है। जब प्राग्राम द्वारा हल किया जा सकता है।
एक प्रोग्राम के लिए आवष्यक स्पेस निम्नलिखित हैं।
1. इन्सट्रक्षन स्पेस- प्रोग्राम के एक्जीक्यूटेबल वर्जन को भंडारित करने हेतु आवष्यक स्पेस जो स्थायी होता है।
2. डाटा स्पेस- सभी चर अथवा अचर को भंडारित करने के लिए आवष्यक स्पेस जिसके दो कंपोनेट होते हे।
3. इन्वायरमेंट स्टेक स्पेस- सस्पेन्डेन्ट फंक्षन को रिज्यूम करने हेतु आवष्यक जानकारी को भंडारित करने के लिए प्रयोग में आने वाला स्पेस।
§ एल्गोरिथ्म
रिप्रजेन्टेशन
एल्गोरिथ्म को कई प्रकार से व्यक्त एवं परिभाषित किया जा सकता है।
एल्गोरिथ्म का प्रस्तुतिकरण इस प्रकार होना चाहिए, कि वह कम्प्यूटर प्रोग्राम में आसानी से परिवर्तित हो जाऐ। वास्तव में कम्प्यूटर प्रोग्राम भी एक प्रकार से एल्गोरिथ्म ही है जो कि कम्प्यूटर भाषा में लिखा जाता है एवं एल्गोरिथ्म किसी समस्या का चरणबद्ध हल है जेा सभी प्रोग्रामिंग भाषा से अलग होती है। एल्गोरिथ्म को सामान्य बोलचाल की भाषा जैसे- अंग्रेजी अथवा हिन्दी के सरल वाक्यों में व्यक्त करना चाहिए एल्गोरिथ्म व्यक्त करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि निर्देष चरणबद्ध, छोटे एवं निष्चित हो।
एल्गोरिमि को विकसित करते समय निम्नालिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1 एल्गोरिथ्म सरल, प्राभावशाली एवं विश्वसनीय हो।
2 एल्गोरिथ्म समझने में आसान हो जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर उसमें आसानी से सुधार किया जा सके।
3 एल्गोरिथ्म सर्वमान्य होनी चाहिए, अर्थात किसी कम्प्यूटर विषेश या किसी प्रोग्रामिंग भाषा पर आश्रित नहीं होना चाहिए
4 एल्गोरिथ्म इस प्रकार की होनी चाहिए कि उसे आसानी से लागू किया जा सके।
5 एल्गोरिथ्म में कम्प्यूटर समय, कम्प्यूटर मेमोरी एवं अन्य संसाधनो का मितव्यतापूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
एल्गोरिथ्म को चित्रमय रूप में व्यक्त किया जा सकता है। फ्लो चार्ट का प्रयोग कर एल्गोरिथ्म को व्यक्त किया जाता है। एल्गोरिथ्म का यह प्रस्तुतिकरण फ्लो चार्ट या प्रवाह सचित्र कहलाता है। सह फ्लो चार्ट बनाने के लिए कुछ मानक चिन्हों संकेतों का प्रयोग किया जाता है। यह फ्लो चार्ट दिषात्मक तीर के माध्यम से जुडे होते हैं। एवं एल्गोरिथ्म के तर्क एवं डाटा प्रवाह की किषा को दर्शाते हैं। फ्लो चार्ट कुछ प्रोग्रामिंग धारणा जैसे- रिकर्सन इत्यादि प्रदर्शित करने में असमर्थ होते हैं।
उदाहरण- बाइनरी विधि को तीन प्रकार की एल्गारिथ्म से व्यक्त कर सकते हैं। जो कि निम्नलिखित हैं।
एल्गोरिथ्म-1
Step 1 : Read the ordered array of size N and elements which is to
be search in the above List
Step 2 : Initialize lower and upper limit.
Step 3 : Perform search by repeating step (1) and (2) found or
there are no more element in the list.
(1) Calculate the position )/index of the mid point element in the
current search area.
(2) Examine the mid element
and compare it with search elements.
If the mid element contains the desired element is less then stop
the search.
Else if the value of the search element is less then the value of
mid element.
Else reduce the search interval to the second half by adjusting the
lower limit value limit value to one plus the mid-value.
एल्गोरिथ्म – 3
Step 1 : Read Search element (S), Size of List (N)
Step 2 : Set Low = High = N: Found = false
Step 3 : While (Found is false) AND (High >= 100)
MID = (Low + High) DIV 2
If S = List (MID)
THEN Found = TRUE
Else
If S < List (MID)
THEN High = MID – 1
Else Low = MID + 1
End
0 comments:
Post a Comment