Fundamental of Computer
Unit-II
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Fundamental-of-Computer-unit-I
Fundamental-of-Computer-unit-III
Fundamental-of-Computer-unit-IV
Fundamental-of-Computer-unit-V
COMPUTER ORGANIZATION AND WORKING
समस्त Computer
System मुख्य रूप से 5 प्रकार के कार्य करते है ।
§ 1. Input :-
इनपुट यूनिट की सहायता से पाट्र्स जनरल लैंग्वेज में Receive इनफारमेशन को मशीनी लैग्वेज कोडिग में कन्वर्ट कर CPU. तक पहुचाते है ।
§ 2. Storage :-
इनपुट यूनिट से प्राप्त जानकारी डेटा मेमोरी में जाकर स्टोर हो जाती है ताकि इनका उपयोग प्रारंभिक तथा अतिरिक्त प्रक्रिया के लिए समय
- समय पर कम्प्यूटर द्वारा किया जा सके।
§ 3. Process :-
कम्प्युटर का मुख्य कार्य डेटा का निर्देशों के अनुसार प्रोसेस करना है एक ऐसा भाग जहां हर प्रकार की गणना को किया जा सके ALU कहा जाता है इस प्रभाग में +-*/
के अतिरिक्त 2 नंबरों में भी की जा सकती है । जिसे Logic Operation कहा जाता है ।
§ 4. Outputting :-
Outputting
की मदद से Computer द्वारा Process
data तथा Information को User तक पहुचाया जाता है यह कार्य Computer Printer द्वारा प्रिंट करके या Screen की सहयता से Display करता है ।
§ 5. Controlling :-
C.P.U में Control Unit एक ऐसा पार्ट है जौ कम्प्युटर की सारी Activities
को Control करता है । इसकी सहायता से ही जानकारी को मेमोरी में सही जगह पर पहॅुचाया जाता है । प्रोग्राम के कमांड को क्रमानुसार पालन करना होता है । व डेटा का मेमोरी में सही जगह से चयन किया जाता है
Processing के
बाद Calculation व Result
को फिर मेमोरी में भेज देना ही Control Unit का ही काम है।
§ 6. C.P.U. :-
Computer
में सारी क्रियांए CPU से संपन्न होती है:
Computer
की सारी
Units CPU के नियंत्रण में होती है । CPU Data Bus Cable का स्वामी होता है। अर्थात इन पर जो भी जानकारी प्रवाहित होती है वह की अनुमति से होती है।
C.P.U. Computer के मस्तिष्क का कार्य करता है। बचन का संपूर्ण परिपथ एक ही अर्द्धचालक (Sami
Conductor) के टुकडे पर बना होता है। इस Chip को Micro
Processer कहते हैं। प्रत्येक निर्माता कम्पनी अपना अलग बचन बनाता है।
जैसेः- Pentium, Celeron आदि Intel Company के Micro Processer की चिप लग जाती है तो यह Micro Computer कहलाता है। C.P.U. के अंदर निम्न इंकाइयां होती है।
1. ALU 2. CU 3. REGISTER
§ ALU :-
सारी अंकगणितीय व तार्किक क्रियांए इस इकाई में संपन्न होती है। अंकगणितीय क्रियांए जैसे जोड़ए घटानाए गुणाए भाग आदि इसी इंकाई के द्वारा संपन्न की जाती है। इस इकाई में तार्किक परिपथ होते है। जैसे एडर मल्टीप्लेक्स आदि ALU को संख्याऐं विभिन्न रजिस्टरों से प्राप्त होती है।
C.U.
से तंरग (Signal) मिलते ही यह बताया गया कार्य संपन्न कर देता है। परिणाम को भी रजिस्टर में डाल दिया जाता है। सामान्यतः एक्यूम्लेटर नामक रजिस्टर में परिणाम को भी रजिस्टर में डाल दिया जाता है। फ्लेग रजिस्टर के अंदर की विभिन्न बिटें (Bits) परिणाम से प्रभावित होती
है
§ 2.
C.U.(Control Unit):-
Computer में सारे खंड व इकाईया
इसके नियंत्रण में होते है। इससे Signal मिलने पर ही ALU कार्य संपन्न करता है। रजिस्ट्रर द्वारा जानकारी के आदान - प्रदान
पर भी बन का नियंत्रण होता है। Input Output तथा Memory की क्रियाऐं भी इसके नियंत्रण में होती है। यही इकाई विभिन्न क्रियांओं का क्रम तय करती है। अतः इससे निकलने वाले Signal को
Typing
Signal कहते है। निम्न चित्र से ALU & CU की स्थिति स्पष्ट होती है।
§ 3.
Registers:-
Register वे अर्द्धचालक Sami conductor युक्तियां (Devices) है जो Binary number के संग्रह करने के कार्य में आती है। C.P.U. के रजिस्टर अत्यंत तेज गति से कार्य करने वाले Register होंते है। इनका प्रयोग विभिन्न Input Numbers परिणामों तथा Memory के पतों (Address) के लिए किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण Registers के नाम निम्नानुसार है:-
ð -General
Purpose Registers
ð NON-
Programmable Registers
ð Index
Registers
ð Instruction
Registers
ð Accumulator
ð Programme
Counter (Instruction pointer)
ð Flag
Register (Status Registers)
ð Stack
Pointer (SP)
§ 5.
System bus :-
समान्तर वायरों का वह समूह जो C.P.U., Memory तथा Input-Output के बीच में विधुत Signals से के रूप में जानकारी प्रवाहित करता है । System bus कहलाता है । System bus 3 तरह की बसों से बनी होती है ।
1.
Address bus 2. Data bus 3. Control bus
§ 1.
Address bus:-
इस
बस पर मेमोरी या किसी Input- output का।Address आता है । यह
हमेशा एक दिषीय होता है । क्योंकि
यह हमेशा C.P.U. से दूसरी युक्यिों की ओर जाता है । C.P.U. का कोई ।Address नही
होता बल्कि यह दूसरी यूक्ति के ।Address इने
पर जाकर उन्हे चुनता है ।
§ 2. Data
bus:-
इस बस पर डेटा या निर्देश होते है यह द्धिदिशीय होती है। क्योंकि कई बार डेटा मेमोरी या इनपुट से CPU में आता है । तथा
कई बार CPU से मेमोरी या आउटपुट को जाता है । डेटा
बस में उपस्थित लाईन की संख्या से CPU को प्रोग्राम के क्रियान्वयन गति का पता चलता है।
3. Control bus :-
यह Control Signal को लाने व ले
जाने वाली वायरों के समूहों को दर्शता है । C.P.U.को निंयत्रण इकाई द्वारा कई Control Signal उत्पन्न
किये जाते है । ये
Input-
output तथा memory को नियंत्रित करते है ।
4. Memory:-
जैसी की हम जानते है कि जब कभी हम कम्प्यूटर को कोई डेटा या निर्देष देते है वह कम्प्यूटर अपने अंदर स्टोर कर लेता है कम्प्यूटर इसे जिस स्थान पर संग्रह करता है उसे मेमोरी युनिट कहते है अर्थात मेमोरी युनिट वह युनिट होती है जो कम्प्यूटर को दिये गये डेटा या निर्देष तथा कम्प्युटर द्वारा की गई प्रक्रिया के आउटपुट को स्टोर करने का काम करती है । सारी
जानकारी कम्प्युटर की मेमोरी में संग्रहित होती है।
- कम्प्युटर की मेमोरी दो प्रकार की होती है:-
1. प्रायमरी मेमोरी
2. सेकेंडरी मेमोरी
लेकिन जो मेमोरी कम्प्युटर के ब्लाक डायग्राम में दर्शाई गई हें । वह
प्रायमरी memory हे। क्योंकि यही सी.पी.यू. से
सीधे जानकारी लें दे सकती हे। उपयोगकर्ता के सारे प्रोग्राम तथा कुछ मानीटर प्रोग्राम पहले इस मेमोरी में आते है तभी CPU द्वरा
तत्काल नहीं वाहे जाते है, रहते
है इनको इनपुट तथा आउटपुट में रखते है जैसे फ्लॉपी डिस्क, हार्डडिस्क तथा मेग्नेटिक टेप आदि।
-प्रायमरी मेमोरी 2 प्रकार
की होती है:-
1. RAM 2. ROM
§ 1. Ram (Random
Access Memory):-
उपयोगकर्त्ता के प्रोग्राम क्रियांवित होने से ठीक पूर्व रेम में होते है। इसलिये इसे यूजर मेमोरी कहते है। इस मेमोरी में लिखने व पढने
दोनों की क्रियाए होती है। इसलिये इसे R/W (Read-Write) मेमोरी भी कहते है जब विघुत बंद कर दी जाती हैतो इसके अंदर की जानकारी नष्ट हो जाती इसलिये इसे Volatile (वाष्पशील) मेमोरी भी कहते है।किसी कम्प्युटर में रेम की मात्रा सें उसके प्रोग्राम क्रियान्वयन की गाति तय होती है। दो प्रकार की रेम उपयोग में लाई जाती है। स्टेटिक व डायनामिक।स्टेटिक
रेम तेज होती है परन्तु मंहगी होती है डायनामिक रेम धीमी परन्तु बहुत सस्ती होती इसलिये डायनामिक रेम का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
§ 2. ROM
(Read only Memory):-
जब रोम की चिप को कम्प्युटर में लगा दिया जाता है। तो रीड (पढ़ना) की क्रिया हो सकती है। अर्थात सीपीयू इसके अंदर प्रोग्राम को सिर्फ पढ़ सकता है। इसके प्रोग्राम में कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। और ना ही उपयोगकर्त्ता कोई प्रोग्राम इसमे लिख सकता है। इसमें कुछ टेस्ट प्रोग्राम तथा मानीटर प्रोग्राम होते है जो कम्प्युटर के कार्य करने में मदद करते है जब विधुत बंद हो जाती है। तब भी इस मेमोरी का प्रोग्राम नही होता है। इसलिए इसे स्थायी (permanent) या Non volatile मेमोरी की श्रेणी रखते है। कल पाँच प्रकार की रोम होती है।
MROM, PROM, EEPROM, EAPROM, EPROM,।
INPUT DEVICE
§ Input
Device:-
वे उपकरण है
जिसके द्वारा Computer में कोई भी जानकारी Input की जा सकती है। मुख्य रूप से Input के लिए जा उपयोग किए
जाने वाले Device
·
Key Board:-
वह सबसे अधिक प्रचलित Input उपकरण है इससे Computer की मेमोरी
में सीधे ही Data Input किया जा सकता है एंव जो Data
Input किया जा रहा है उसे VDU साथ-साथ देखा भी जा सकता है। यह उपकरण टाइपराइटर जैसा होता है और इसमें उसी क्रम के button
keys होते है। यह जिसको दबाने पर वे अक्षर Memory में जाकर Screen पर Print हो जाता है। Key Board में सामान्यतः 84 या 101, 105, 120 की होती है। Courser नियंत्रण के लिए विशेष कार्यो के लिये व अंकीय Data Input करने के लिए कुछ अन्य Key होती है। जो इस प्रकार है ।
fundamental-of-computer-unit-II |
1. Type Writer Key :-
इसके अंतर्गत सभी प्रकार के Alphabets (A-Z) Number (0-9)ओर कुछ Special Software *, +, -, %, $, # ,@, होते हैं।
2. Function Keys:-
Key Board में F1 से F12 तक 12 Function Keys होती है, जिसका Use विभिन्न Software में अलग-अलग कार्य करने में किया जाता है।
3. Cursor Control Keys:-
इस की के द्वारा Cursor को Screen पर Left, Right, Up, Down ले जाने के लिए उपयोग किया जाता है जैसे:-
fundamental-of-computer-unit-II |
इसके
द्वारा वर्तमान में Cursor जिस Page पर है, उससे
पहले वाले Page पर
जाने के लिए किया जाता है।
इसके द्वारा वर्तमान में Cursor जिस Page पर है, उससे नीचे वाले Page पर जाने के लिए किया जाता है।
(C) Home:-
इसका प्रयोग स्क्रीन पर प्रदर्शीत होने वाले पेज की फस्ट लाईन के प्रारंभ में Cursor को ले जाने के लिए किया जाता है। साथ ही Ctrl End Key के साथ Use करने पर Document File के सबसे पहले पेज की पहली लाइन के पहले केरेक्टर पर जाया जा सकता है।
(D) End:-
इसका प्रयोग Current page के Current Line के Last में Cursor को ले जाने के लिए किया जाता है। साथ ही Ctrl+Home key के साथ Use करने पर Document File के सबसे आखरी पहले पेज की आखरी लाइन के आखरी केरेक्टर पर जाया जा सकता है।
4. Numeric Keypad:-
Key board के Right Side में एक Numeric keypad होता हैं जिसमें Calculation के समान की होती है। जिसका आवश्यकतानुसार Use किया जा सकता हैं लेकिन यह तभी काम करता हैं जबकि Num Lock का लाइट on हो। Num Lock का लाइट off होने पर Number पर बनी अन्य Key जैसे Home, End, page up, page Down key काम करने लगती हैं।
5. Caps Lock:-
इस Key को On करने पर सभी अक्षर Capital Letter में Type होने लगते है, और पुनः इसी Key को Off करने पर सभी अक्षर Small Letter में Type होने लगते हैं।
6. Shift Key:-
इस Key को किसी Character के साथ प्रेस करने पर उस Character को Capital Letter में टाईप कर सकते है । परन्तु यदि Caps Lock, On हो तो इस Key के साथ किसी Character को प्रेस करने पर वह Small Letter में Type होने लगता है।
7. Ctrl Alt Keys:-
Control And Alter key कुछ अन्य के साथ किसी विशेष कार्य करने के लिये Function की तरह तथा Shortcut key तथा Hot Key में उपयोग की जाती है।
8. Enter Key:-
इस की के द्वारा Computer को कोई भी कमांड पूरा होने के बाद नया कमांड देने के लिए किया जाता है। या किसी फाईल में कोई मेटर टाइप करते समय नयी लाईन पर जाने के लिए उपयोग किया जाता है डेटा या इनफारमेशन को एक्सीक्यूट करने के लिए उपयोग कि जाता है। Dos तथा FoxPro में Command Enter करने पर ही Run होती है।
9. Pause Key:-
यदि किसी कमांड के द्वारा Computer पर Information एक के बाद एक दिखाई देने लगे और हम उसे पढ न पाये तो इस की के उपयोग से उन्हे रोका जा सकता है। अर्थात Output यदि Scroll हो रहे हो तो उन्हें रोका जा सकता है । मुख्यतः इसका Use DOS तथा FoxPro में किया जाता है।
10. Tab Key:-
इस की का उपयोग MS-Word में टेबल या तालिका बनाने के लिए किया जाता है, Paragraph, Setting के लिए Tab key का उपयोग किया जाता है इसका Margins Default 0.5 Set होता है। तथा MS-Excel में अगले Cell पर तथा अन्य Software में अगली Command या Option पर जाने में इसका Use किया जाता है।
11. Escape Key:-
Escape Key का उपयोग किसी कमांड को Cancel करने के लिए या किसी प्रोग्राम से बाहर आने के लिए किया जाता है।
12.
Print Screen Key :-
इस की के द्वारा स्क्रीन पर प्रदर्षित हाने वाली जानकारी को प्रिंट Copy करने में किया जा सकता है।
13. Delete Key :-
इस की के द्वारा जिस अक्षर पर Curser उसके बाद के अक्षर को मिटाया जस सकता है।
14. Back Space Key :-
इस की के द्वारा Curser के Left Side वाले अक्षर को मिटाया जा सकता है।
§ Scannar
यह एक एसी इनपुट डिवाइस है जिसके द्वारा हम किसी भी Printed
Shape या Image को Computer पर देख सकते है या देखे जाने वाले Picture में Change कर सकते है । इसमें Fast या Accurate,
Entries Provide की जाती है यह कोई भी Graphics Picture, Information को Direct, Computer
में Capable होता है।
Conduction for user with use of
Scanner
इसमें सीधे कम्प्युटर को डेटा दे सकते है अतः इनपुट Document को High quality का होना चाहिए। अधिकतर ये डिवाईस जहां डेटा अधिक देना पड़ता है। वहां महंगा पड़ता है।
(1) Mono Scanner :-
इस प्रकार के Scanner द्वारा किसी आकृति को केवल Black & White में ही किया जा सकता हैं। आधुनिक तकनीक की सहायाता से हम English भाषा के लिए Text को scan करके इसमें संपादन भी कर सकते हैं इस प्रकार के scanner द्वारा scan की गयी आकृति में Black
& White colour के माध्यम से 256 Shades
scan किए जा सकते है। ये दो प्रकार के होते है।
(2) Colour Scanner :-
इस प्रकार के Scanner के द्वारा किसी आकृति को उसके वास्तविक रंगों के साथ में scan किया जा सकता है।
(a) Handily
Scanner :-
ये माउस से लगभग 3 गुना साईज का होता है इसका उपयोग छोटी आकृतियों को स्केन करने के लिए किया जाता है। इस स्केनर को माउस की भांती हाथ से चलाया जाता है। जिस आकृति को स्केन करना होता है उस आकृति पर इस स्केनर को लाकर स्केनिंग का कार्य किया जाता है। आकृति को स्केन करते समय इस स्केनर का लाईट जलता है। अब इस स्केनर को आकृति पर शुरू से चलाया जाता है स्केन की जाने वाली आकृति को किसी भी इमेज प्रोसेसर में लाया जा सकता है।
इस प्रकार के स्केनर की परिसीमा है कि इसको हाथ से चलाने के कारण इसके हिलने की संभावना रहती है जिससे स्केन की जा रही आकृति क्षतिग्रस्त हो सकती है।
(b) Flatted
Scanner :-
यह एक छोटी से फोटो कापी की भांती होता है। इस प्रकार के स्केनर में ए-4 साईज के किसी कागज को डालकर उस पर बनी आकृति को स्केन किया जा सकता है।
इस प्रकार के स्केनर के लिए स्केन कार्ड, केबल एंव कनेक्टर स्केनिंग साफ्टवेयर आवष्यकता होती है। Computer में सर्वप्रथम मदर र्बोड में स्केन कार्ड लगाते है इसके प्ष्चात स्केनर को केबल व कनेक्टर द्वारा स्केन कार्ड से जोड देते है। इसके बाद कम्प्यूटर में स्केनिंग साफ्टवेयर install करते हे। इस प्रकार हम अत्यंत सरलतापूर्वक किसी भी प्रकार के स्केनर को कम्प्यूटर के साथ जोडकर प्रयोग कर सकते है।
§ Mouse:-
fundamental-of-computer-unit-II |
Key board की तरह Mouse भी एक Input
Device है जो पी.सी. से कई तारों वाली एक केबल से जुडा होता है Mouse के नीचे की ओर एक छोटी सी बाल लगी होती है , जो हमेशा Mouse pad की सतह से जुडी होती है इसका आकार चूहे के आकार का होने के कारण इसे Mouse कहते है माउस के क्रियाशील होने पर मानीटर पर Arrow
sign Display होता है और जैसे-जैसे pad पर माउस को Move किया जाता है यह Arrow या Mouse
curse, Monitor पर मुव करता या चलता है। कई प्रोग्राम फाईल का उपयोग माउस के द्वारा सरलता से कर सकते है।
माउस के वटन को एक बार
दबाने की क्रिया को Click करना कहा जाता है। कुछ प्रोग्राम में काम करते समय Mouse Pointer की आक्रति बदलती रहती है।
यह एक एसी डिवाइस है जिसके द्वारा स्क्रिन में Curse को
मुव किया जा सकता है, एंव
किसी आपसन या कमांड को और Rubber Ped लगा होता तथा उपर की और बटन होते है। जिससे अधिकांश बायें बटन
का प्रयोग किया जाता है दायें बटन का प्रयोग कुछ विशेष कार्यों के लिए किया जाता
है माउस दो प्रकार के होते है।
1. Two Button Mouse
2. Three Button Mouse
§ Light
Pen:-
यह एक Input device है जो कि बाल पेन की तरह होता है जिससे हम Direct ही Screen पर पहले से ही कोई design बनी हुई है उसे इस Light Pen के दुवरा
Changes किए जा सकते हैं उसके बाद Computer में स्टोर कर सकते हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Bar Code Reader:-
बाजार में मिलने वाले पाकेट बुक या अन्य वस्तुयों पर एक लेबल बना होता है जिससे कुछ मोटी व पतली लाइने बनी होती है। यह एक प्रकार का कोड होता है जिससे उस वस्तु का मूल्य एवं अन्य Information लिखी होती है जिन्हे
Computer शीघ्रता से पढ़ लेता है। इन्हे Bar Code कहा जाता है इसका ज़्यादातर उपयोग पश्चिमी देशों में होता है। पर आजकल भारत में भी इसका उपयोग होने लगा है।
बार कोड को पढ़ने के लिए एक विशेष प्रकार के पेन जैसे उपकरण का उपयोग किया जाता है जिसे Official Band कहा जाता है इसमें पहली पांच Digits, Supplier Manufacture को Identity करने के लिए होती हैं व दूसरी Five Digits Product Identity करने के लिए होती हैं।
|
There are three tyeps of characters reader:-
1. OCR
(Optical Character Reader)
2. OMR
(Optical Mark Reader)
3. MICR
(Megnetic ink Character)
1. OCR:-
यह एक ऐंशी input device है जिसके द्वारा किसी printed paper को पढकर data
entry autometiclay computer में हो जाती है यह Device सभी Alphabets, Numbers व Special Symbols (*,+,-,/,#) को समझने की क्षमता रखता है। यह Reflected, Numbers के द्वारा उत्पन्न Patterns को Read कर Signal Produce करता है ओर इस सिंग्नल को कम्प्यूटर में पहले से स्टोर सिंग्नल से Compare करता है जैसे ही वह Entry Computer में Automatically हो जाती है। एक सामान्य OCR
की Speed 20400 Character Per Speed होती है।
fundamental-of-computer-unit-II |
यह एक विशेष डिजाईन के बने कार्ड में लगे निशान को पढकर डेटा केा इनपुट करता है। ये निशान पेन या पेनसिल किसी के भी हो सकते है। जैसे बहुत सारे विधार्थी किसी परीक्षा में बैठ रहै है जिसमें सारे प्रश्न Objective Type के प्रत्येक विधार्थी को एक उत्तर पुस्तिका दी जाती है जिसमें प्रत्येक उत्तर के अनुसार Square
या Round में निशान लगाना होता है इसमें Answer Sheet के आर-पार एक तेज Light दी जाती है जिससे ओ.एम.आर. को लाईट का पता चल जाता है और यदि मार्क सही बाक्स में या सही Square
में लगाया गया है तो उसे नंबर दे दिए जाते हैं इस प्रकार सभी उत्तर पुस्तिका बहुत तेजी से चेक हो जाती है।
fundamental-of-computer-unit-II |
MICR एक एसी Input Device है जो कि एक विशेष प्रकार के Magnetic Ink से लिखे गये Character को Read कर Data की Entry करता है यह Security Purpose में उपयोग होता है इसकी Ink
में Iron
Oxide के कण होते हैं Magnetic Field के पास होने पर Magnetized (चुंबकीय) हो जाते हैं यह विशेष कलर को भी समझते है MICR का उपयोग बैंक में होता है।
यदि किसी ग्राहक के चेक में नाम Magnetic Ink से लिखे गये है तब इस चेक में A/C No. Signature को MICR में लगाने पर यह अपने आप इस A/C में से इतने रूपये निकालकर दे देता है जितने ग्राहक के चेक में भरे गये हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
यह बाल उल्टे माउस की तरह होती है जिसमें चक्रों की केवल एक स्माल बाल होती है या जिसके द्वारा ट्रेक बाल चारों तरफ मुव कर सकती है ट्रेक बाल खासकर बच्चों के लिए बनायी जाती है जिसके द्वारा Computer पर Game खेल सकते हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Joy Stick :-
इस Input Device का उपयोग Video
Games में होता है यह एक Electro Machine Device
है इस डिवाईस का उपरी हिस्सा एक हैंडल या स्टीक के समान होता है जिसके नीचे सोकेट में घुमाया जाता है।
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Digitizer
Tablet :-
यह Pictures, Graphics को बनाने के लिए उपयोग होते हैं Digitizer एक इनपुट डिवाईस है जो कि Graphics या Picture data को Digit के रूप में Signals में Convert करता है जो की सीधे ही Computer के अन्दर इंटर होकर स्टोर हो जाता है Digitizer देा प्रकार के होते हैं।
1. Flatted
Digitizer
2. Image
Scan Digitizer
1. Flatted Digitizer:-
इसमें एक Rectangular Flatted
Table होता है जिसमें
Picture का आकार इसके अंदर दिया जाता है और इस Flatted Digitizer में Drawing
को Digitized करके Rectangular
Table पर फैलाकर रख देते हैं Drawing की Surface करता है जो Flatted Digit को Move करता है जो Drawing को Scan करता है और Signal Produce करता है।
Table के X और Y Co-Ordinate (अक्ष) जो कि सेल होता है उसमें जाकर Computer की मेमोरी में स्टोर कर देते हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
2. Image Scan Digitizer:-
यह पूरी drawing Photography
को Scan कर सकता है यह केवल shape & Size ही Digitize नहीं करता बल्कि यदि हमें अलग-अलग Intensity दी है तो Drawing भी Digitize कर सकते हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
Ø Scanner:-
यह एक ऐसी इनपुट डिवाईस है जिसके द्वारा हम किसी भी Printed Shape या Image को Computer पर देख सकते हैं या देखे जाने वाले Picture में Change
कर सकते हैं। इसमें Fast
या accurate, entries
provide की जाती है कोई भी Graphics, Picture, information को Direct, Computer में Enter
करने में Capable होता है।
Ø Conduction
for easer with use of Scanner
इसमें सीधे कम्प्यूटर को डेटा दे सकते हैं अतः इनपुट Document को High Quality का होना चाहिए। अधिकतर ये डिवाईस जहां डेटा अधिक देना पड़ता है। वहां महंगा पड़ता है।
(i) Mono Scanner:-
इस प्रकार के Scanner द्वारा किसी आकृति को केवल Black
& White में ही Scan किया जा सकता है। आधुनिक तकनीकी की सहायता से हम English भाषा के लिए Scan को करके इसमें संपादन भी कर सकते हैं। इस प्रकार के Scanner द्वारा Scan की गयी आकृति में Black & White Color
के माध्यम से 256 Shades Scan किए जा सकते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं।
(ii)
Colour Scanner:-
इस प्रकार के Scanner के द्वारा किसी आकृति को उसके वास्तविक रंगों क साथ में Scan किया जा सकता है।
(a)
Handly Scanner:-
यह माउस से लगभग 3 गुना साईज का होता है इसका उपयोग छोटी आकृतियों को स्केन करने के लिए किया जाता है। इस स्केनर को माउस की भांती हाथ से चलाया जाता है। जिस आकृति को स्केन करना होता है उस आकृति पर इस स्केनर को लाकर स्केनिंग का कार्य किया जाता है। आकृति को स्केन करते समय इस स्केनर का लाईट जलता है। अब इस स्केनर को आकृति पर शुरू से चलाया जाता है स्केन की जाने वाली आकृति को किसी भी इमेज प्रोसेसर में लाया जा सकता है।
इस प्रकार के स्केनर की परिसीमा है कि इसको हाथ से चलाने के कारण इसके हिलने की संभावना रहती है जिससे स्केन की जा रही आकृति क्षतिग्रस्त हो सकती है।
fundamental-of-computer-unit-II |
(ii)
Flatted Scanner:-
यह एक छोटी से फोटो कापी की भांती होती है। इस प्रकार के स्केनर में ए-4 साईज के किसी कागज को डालकर उस बनी आकृति को स्केन किया जा सकत है।
इस प्रकार के स्केनर के लिए स्केन कार्ड, केबल एवं कनेक्टर स्केनिंग साफ्टवेयर की आवश्यकता होती है। Computer में सर्वप्रथम मदर र्बोड में स्केन कार्ड लगाते हैं इसके पश्चात स्केनर को केबल व कनेक्टर द्वारा स्केन कार्ड से जोड़ देते हैं। इसके बाद कम्प्यूटर में स्केनिंग साफ्टवेयर Install करते हैं। इस प्रकार हम अत्यंत सरलतापूर्वक किसी भी प्रकार के स्केनर को कम्प्यूटर के साथ जोडकर प्रयोग कर सकते हैं।
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Touch Screen:-
इस इनपुट डिवाइस के द्वारा बहुत कम डेटा इंटर या इनपुट कर सकते हैं यह Micro Computer या Terminal के द्वारा Touch
Screen में किया जाता है। User Screen के मनचाहे location
पर जवनबी करके Option को Select कर सकता है।
उदा.- बैंकों की ATM Machine
fundamental-of-computer-unit-II |
Computer में Output
Unit में हम दिए गए निर्देशों का क्रियान्वयन और निवेश किये डेटा तथा Computer द्वारा प्रक्रिया के पश्चात निकाले गये परिणाम को देखते है मुख्यत निम्न प्रकार के Output Unit है:-
1. Monitor
2. Printer
3. Plotter
4. Speaker
5. Sound
Card
§ Monitor
:- (VDU – Video display unit)
Monitor थवा Visual
display unit, computer की प्राथमिक output unit होती है मानीटर देखने में एक छोटे टी.वी. के तरह होता है।
टी.वी. के समान कम्प्यूटर के मानीटर पर भी Brightness,
contrast एवं कलर को अपनी इच्छानुसार तथा सुविधानुसार बदलने के लिए Control Button होते है।
Computer वह Monitor में सुचना के परस्पर आदान-प्रदान के लिए मानीटर में एक कई तारों वाला केबल लगा होता है जिसके दुसरे सिरे पर लगा प्लग कम्प्यूटर की सिस्टम युनिट के पिछे की और लगे एक साकेट में लगा दिया जाता है इसके अलावा मानीटर को पावर अलग से देनी होती है जिसका तार अलग होता है:-
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Types of Monitor
There are three types of monitor
(i)
Mono Colour Monitor:-
यह एक आउटपुट यूनिट है जिसे स्क्रीन तथा VDU भी कहा जाता है Computer का मानीटर सामान्यतः टी.वी. के स्क्रीन समान होता है जिस पर Character, Graphics Black/White या Colour में दिखाई देते हैं।
मानीटर पर बने चित्र वास्तव में छोटे बिंदओं से मिलकर बनते हैं जिन्हे Pixel
कहा जाता है।
एक सामान स्क्रीन पर 25 Rows & 80 coloums होते हैं। मानीटर पर किसी भी अस्थाई Result
को
देखा जा सकता हैं क्योंकि पावर आफ होने पर या कम्प्यूटर आफ होने पर यह रिजल्ट दिखाई देने बंद हो जाते है मानीटर में 80 अक्षर एक लाईन में होते हैं
(ii) Mono Chrome Monitor:-
Mono Chrome अर्थात एक रंग के पाठ्य कार्यो एवं कंई प्रकार के चित्र बनाने के लिए Monitor लिए Mono
Chrome Monitor का ही उपयोग किया जाता है कुछ समय पहले के Monitor अंधरे में हरे रंग के अक्षर प्रदर्शित करते थे परंतु अब Black/white अर्थात श्वेत-श्याम प्रकार के पहले से प्रचलन में है इसमें अक्षर तथा चित्र Black/White
ही दिखाई देते हैं।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
इसमें कई रंग दिखाई देते हैं। इनका उपयोग रंगीन चित्रों के कार्यो में किया जाता है कई प्रोग्राम में कलर मानीटर लगाने पर विभिन्न प्रकार की सूचनाऐं एक ही पटल पर अलग-अलग रंगो में दिखाई देती है। पानीटर के प्रकार के आधार पर कम्प्यूटर विश्लेषण इकाई में मदर बोर्ड पर डिस्पले कार्ड होता है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
डिस्प्ले कार्ड के आधार पर मानीटर के निम्न प्रकार होते हैं।
§ (A) C.G.A. :- (Colour Graphic Adapter Monitor)
इस प्रकार के मानीटर का उपयोग Personal Computer के प्रारंभ हाने के कुछ समय बाद से ही होता आ रहा है। डिस्प्ले कार्ड से मानीटर पर Characters का High Quality का नहीं था परन्तु Graphics Presentation
में इसे Display Card की मदद से monitor पर एक अच्छा डिस्प्ले किया जा सकता है। इससे पूर्व उपयोग किए जाने वाले मोनोकोम डिस्प्ले एडाप्टर कार्ड की मदद से Graphics का presentation नही हो पाता था परन्तु
Characters का Presentation, CGA Card की आपेक्षा अच्छा होता है था Graphics अच्छी प्रस्तुती की कारण C.G.A. काफी प्रचलन है।
§ (B)
H.G.A:- (Heracles Graphics Adapter)
C.G.A.एवं MDA Card में पायी जाने वाली कमियों को इस कार्ड से दुर करने का प्रयास किया गया इस Display Card के अनुसार अनेक Software निर्माण करने वाली कंपनी ने अपने Display को विकसित किया इसीलिए यह Display Card अधिक प्रचलित हुआ C.G.A. display
card युक्त मानीटर अक्षर एवं ग्राफिक्स दोनो का प्रदर्शन स्तरीय होता था।
§ (C) E.G.A.(Entrance
Graphics Adapter):-
उपरोक्त वर्णित कार्ड कमियों को दूर करते हुए मानीटर पर प्रदर्शन की गुणवत्ता को बढाने के लिए इस कार्ड का विकास किया गया। इंस कार्ड का शुरू में बहुत प्रयोग किया गया, परंतु कालांतर में इस कार्ड युक्त मानीटर पर रंगो का कम होने के कारण इसके प्रयोग में परेशानी आने लगी। इस Card युक्त मानीटर पर हम वांछित resolution में रंगो का प्रदर्शन नही प्राप्त कर सकते थे।
§ (D) V.G.A.
(Video Graphic Adapter):-
आधुनिक कम्प्युटर में प्रयोग किया जाने वाला Display Card VGA ही है इस कार्ड में उपरोक्त सभी कार्डो के गुणों को सम्मिलित किया जाता है। इस कार्ड युक्त मानीटर पर वांछित Resolution
प्राप्त करने के लिए इसे Display पर Ram लगाने का प्रावधान होता है। इस रेम को हम अपनी आवश्यकतानुसार या इच्छानुसार कम या आधिक भी कर सकते है। ये Display Card 16 Bits,
32 Bits में उपलब्ध है अधिक रेम का Display Card, Monitor
पर अधिक प्रदर्शन करता है।
Display Cards का प्रयोग उन मानीटर के लिए किया जाता है जो कि Ray tubes की तकनीकी पर आधारित नहीं होती है।
कुछ कम्प्यूटर में display Screen,
LCD (Liquid Crystal Display) से बनी होती है जैसे Laptop Computer की Display Screen में इस Display Screen प्रदर्शन की Technical, Cathode Ray Tubes पर आधारित है।
2. PRINTAER:-
Monitor पर होने वाले प्रदर्शन को कागज पर प्राप्त करने के लिए प्रिंटर का प्रयोग किया जाता है इस प्रकार हम कह सकते है कि प्रिंटर ऐसी आउटपुट यूनिट है जो कि कम्प्युटर से प्राप्त जानकारी पेपर पर छापती है।
Defination of Printer
“Printer वह डिवाईस है जो किसी भी Document को जिसे हमने Computer पर प्रिंट है उसे कागज पर या शीट पर प्रिंट कर सकते हैं।
Computer से प्राप्त होने वाली जानकारी को आउटपुट बहुत तेजी से मिलता है और प्रिंटर उतनी तेजी से ये काम नहीं कर पाता है, इसीलिए इस जानकारी को संचित करने के लिए प्रिंटर की अपनी मेमोरी भी होती है Computer से Printer की इस मेमोरी में जानकारी भेज दी जाती है यदि Computer
से मिलने वाली जानकारी इतनी अधिक हो कि इसमें संचित न किया जा सके तो इसके लिए एक बटर लगाया जाता है, जो एक या दो सेकेंण्ड में कम्प्युटर से सार डेटा लेता है, जहां से इसे धीरे- धीरे प्रिंटर में लाते हैं।
Types
of Printer
There are two types
of Printer
1. Impact
Printer
2. Non
Impact Printer
1. Impact Printer:-
Impact Printer में धातु से बने हुए एक लेटर हेड को एक छोटे हथोड़े से धक्का लगाया जाता है कागज और लेटर हेड के बीच कार्बन का एक रिबीन लगा होता है जिससे लगी हुई स्याही से वह अक्षर कागज पर छप जाता है या प्रिंट हो जाता है। में उपयोग में लाया जाने वाला टाईप राईटर इंपैक्ट प्रिंटर का एक उदाहरण है।
Computer के साथ प्रयोग किये जाने वाले इंपेक्ट Printer में डेसी विल तथा डाटा मैटिक्स प्रिंटर प्रमुख है इनमें कार्बन पेपर लगाकर एक से अधिक प्रतियां भी एक साथ मुद्रित की जा सकती है।
इंपेक्ट प्रिंटर में प्रिटिंग का कार्य एक स्पेशल अवयव जिसे प्रिंटर हेड कहा जाता है। के द्वारा किया जाता है इस प्रिंटर में प्रिंट किया जाने वाला पेपर अपने स्थान पर रहता है और प्रिंटर हेड Left to Right चलता हुआ प्रिंट करता रहता है एक लाईन पुरी होने के बाद प्रिंटर पेपर पर अगल लाईन प्रिंट करना शुरू कर देता है इस प्रकार जानकारी पेपर पर प्रिंट होती है।
2. Non Impact Printer:-
इसमें प्रिंटिग का काम इंपैक्ट से न होकर अन्य तरीके जैसे हीट या इलेक्टिक या लेजर रेय के द्वारा किया जाता है इसमें प्रिटिंग के समय आवाज नहीं होती है उदाहरण के लिये इंकजैट, लेजर प्रिंटर आदी।
Ø Types of Impact Printer
1. Character
Printer:-
वे प्रिंटर जो एक बार में एक अक्षर प्रिंट करते हैं Character
Printer कहलाते है Character Printer के अन्तर्गत निम्न प्रिंटर आते हैं।
1. Dot Matrix
Printer
2. Daisy Wheel
1. Dot Matrix
Printer:-
यह एक Impact Character
Printer का उदाहरण है इसे D.M.P. भी कहा जाता है यह एक Character Printer है इसमें प्रिंट होने वाले सिंबाल या Character ठोस न होकर Group of dost में बनते है
जैसे:- A, B, C, D, 1,2,3
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Ø Feature
of Dot Matrix
1. DMP की कास्ट अन्य दूसरे प्रिंटर की तुलना में बहुत कम होती है।
2. इनका
साईज अन्य प्रिंटर की तुलना में बड़ा होता है।
3. इनकी
प्रिंटिंग स्पीड अन्य प्रिंटर की तुलना में कम होती है।
4. इसके
द्वारा प्रिंट ज्यादा अच्छी क्वालीटी का नहीं होता है।
2. Daisy Wheel Printer:-
यह भी एक कैरेक्टर Printer
है जिसमें एक व्हील की मदद से प्रिंटिंग की जाती है। इस प्रिंटर का नाम डेसी व्हील इसीलिए रखा गया क्योंकी इसका साईज, डेसी के फूल की तरह होता है इस प्रिंटर में एक व्हील की मदद से प्रिंटिंग की जाती है इसके व्हील पर कैरेक्टर उभरे रहते हैं एवं यह व्हील तेजी से घुमता है इसमें एक हैमर भी होता है जो कैरेक्टर को प्रिंट करता है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Features of Daisy Wheel Printer
1. इस
प्रिंटर द्वारा अच्छी व Shot Printing की जा सकती है।
2. इसके
अलावा Wheel
को बदलकर मनचाहे Symbols Print किए जा सकते हैं।
3. ये
प्रिंटर अन्य प्रिंटर की तुलना में मंहगे होते हैं।
4. इनकी
प्रिटिंग स्पीड सामान्यता कम होती है।
§ Disadvantages:-
1. ये
DMP
की तुलना में मंहगे होते हैं।
2. इनकी
प्रिंटिंग स्पीड कम होती है।
3. इनकी
स्पीड 17-200
Character प्रति सेकंड़ होती है।
Ø Types
of Non Impact Printer
§ Inkjet
Printer:-
यह एक Non Impact
Character Printer होती है जो कि इंक के Spray के द्वारा प्रिंट करता है इसमें एक नोजल होता है जिसमें से इंक की एक छोटी सी बूंद से पेपर पर Spray किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार की इंक होती है। जिसमें
Magnetic गुण उपस्थित होता है। इस इंक के नोजल से निकलती हुई उसमें Electric Power आ जाता है और यह पेपर पर पढते ही दिये गये Character का आकार ग्रहण कर लेता है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Ø Features
of Inkjet Printer
1. इस
प्रिंटर द्वारा बहुत ही अच्छी क्वालिटि की प्रिटिंग की जाती है।
2. इसके
द्वारा विभिन्न कलर का उपयोग कर कलर प्रिंटिंग भी की जा सकती है।
3. ये
प्रिंटर साईज में छोटे हैं।
4. इसके
द्वारा प्राप्त प्रिंटिंग की कास्ट अधिक होती है।
5. इस
प्रिटिंर की कास्ट कम होती है।
§ Disadvantages
:-
किसी भी इंपैक्ट प्रिंटर द्वारा कार्बन लगाकर एक से अधिक कापी प्रिंट की जा सकती है लेकिन इंकजैट प्रिंटर में यह सुविधा नहीं होती है।
§ Line
Printer :-
Line Printer, Per Minute की स्पीड से प्रिंट करता है ये Fast Speed से प्रिंट करते हैं Line Printer भी Impact Printer ही होते है इन Printer के द्वारा एक पूरी लाईन को एक बार में प्रिंट किया जाता है।
इन प्रिंटर की स्पीड डेजी व्हील की अपेक्षा काफी फास्ट होती है लगभग 20-80 लाईन पर सैकेण्ड होती है। drum, child & band printers line printer के उदा॰ हैं ये two types के होता है। इन Printer की स्पीड 300-3000 लाईन पर प्रति मिनट होती है इस प्रिंटर का उपयोग डेटा प्रोसेसिंग एप्लीकेशन में किया जाता है।
§ Drum Printer :-
यह एक इंपेक्ट लाईन प्रिंटर है जिसने चेन की मदद से प्रिंटिंग की जाती है इसमें एक चेन होती है यह चेन दो व्हील के मध्य घुमती है इसमें भी हैमर होते है जिस कैरेक्टर को प्रिंट करना होता है हैमर की मदद से प्रिंट होते हैं।
इसमें बहुत से हेमर होते हैं जिस भी कैरेक्टर को प्रिंट करना है हैमर उस कैरेक्टर पर रिबिन को प्रेस करता है जिससे वह कैरेक्टर पेपर पर प्रिंट हो जाता है इस प्रकार एक बार में पुरी एक लाईन प्र्रिंट हो जाती है ड्रम प्रिंटर की स्पीड 300-2000 लाईन प्रति मिनिट होती है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Chain
Printer:-
यह एक इंपेक्ट लाईन प्रिंटर है जिसमें चेन की मदद से प्रिंटिंग की जाती है इसमें एक चेन होती है यह चेन दो व्हील के मध्य घुमती है इसमें भी हैमर होते है जिस कैरेक्टर से प्रिंट करना होता है हैमर की मदद से प्रिंट होते हैं।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Ø Feature
of Chain Printer
1. इस प्रिंटर द्वारा अच्छी व Short Printing की जा सकती है।
2. जहां पर बहुत सी जानकारी प्रिंट करनी हो तो वहां के लिए यह उपयोगी है।
3. प्रिंटिंग स्पीड 300-3000 लाईन प्रति मिनिट होती है।
4. इसके द्वारा
Graphics भी प्रिंट कर सकते हैं।
5. इसके उपयोग डेटा प्रोसेसिंग एप्लीकेशन में किया जाता है।
6. अधिकतर लाईन प्रिंटर केपिटल लेटर में ही पिंट करते हैं परन्तु आजकल केपिटल व स्माल दोनों लेटर में प्रिंट करते हैं।
§ Band
Printer:-
1. Page Printer:-
वे प्रिंटर जो एक बार में एक पेज को प्रिंट करते है पेज प्रिंटर कहलाते हैं।
2. Laser Printer:-
यह एक Non Impact Page Printer
है इस प्रिंटर के द्वारा एक समय में पूरे एक पेज को प्रिंट किया जाता है इसमे लेजर रेस को एक दर्पण की सहायता से Modulator करते हुए एक Drum पर फेंका जाता है जिसके कारण प्रिंट होने वाले कैरेक्टर की सरफेस आवेशित हो जाती हैं इस आवेशित सतह पर एक खास किस्म का Toner Powder (ink) डाला जाता है। जिसमें पेपर की सरफेस पर कैरेक्टर उभर जाते हैं।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Features
:-
1. ये Printer
आकार में छोटे परन्तु काफी मंहगे होते है।
2. इनके द्वारा प्राप्त
Printout की Quality बहुत अच्छी होती है।
3. Printing Cost अन्य
Printer की तुलना में अधिक है।
4. इस प्रिंटर की प्रिटिंग
स्पीड अन्य प्रिंटिरों की तुलना में अधिक है।
3. PLOTTER:-
विभिन्न diagram में Output प्राप्त करने के लिए प्लाटर का उपयोग किया जाता है। प्रिंटिंर मे केवल बाये से दाये लिखा जाता हैं। जबकि प्लाटर मे ऊपर से नीचे लिख सकते है। इसमें एक विशेष प्रकार की पेन होती है जिसे Stay lash कहते है प्लाटर मे विभिन्न रंगो के पेन का उपयोग कर रंगीन आउटपूट प्राप्त कर सकते है इसका प्रयोग ड्राईग, चार्ट, मेप आदि प्रिंट करने में किया जाता है।
Ø Types
of Plotter
1. Flatted Plotter:-
इसमें एक स्थिर Horizontal Area होती है। जिस पर Drawing Sheet लगी होती है या पेपर होता है। इस पर एक पेन कागज पर ग और ल दोनो दिशाओं में घुमकर कोई भी आकृति या पिक्चर बना सकता है। यहां पेन के मुवमेंट अथवा घुमने की दिशा का नियंत्रण या कन्ट्रोल सरफेस के माध्यम से होता है।
2. Drum Plotter:-
इसमें एक घूमने वाले ड्रम पर ड्रांईंग पेन लगे होते है ये पेन लेफ्ट व राईट दोनो दिशाओं में घूम सकते हैं। ड्रम पर लपेट देते हैं यह ड्रम भी आगे व पीछे दोनो दिशाओं में घुम सकता है।
इस प्रकार ड्रम व पेन दोनों की मुवमेंट के द्वारा पेपर पर डाईग बनायी जाती है यहा पेन व ड्रम की गति का नियत्रंण Computer द्वारा Software
के
माध्यम से होता है Drum Plotter की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें पेपर रोल का प्रयोग कर किसी भी लंबाई की ड्रांईग बनायी जा सकती है ।
STORAGE DEVICES
किसी भी Computer में Primary Memory सीमित भाग में ही प्रयोग की
जाती है इसलिये अधिक मात्रा में डेटा स्टोर करने के लिए Secondary Memory
का प्रयोग किया जाता है। समान्यत Secondary Memory, Magnetic
Material की बनी होती है इसलिए Primary Memory की तुलना मे अधिक समय लगता है। इस मेमोरी का Computer में अधिक मात्रा मे होता है।
1॰ Magnetic Tape :-
यह एक लगभग 5‘‘ चैड़ाई का रिबीन होता है जिससे एक Plastic Base पर Magnetic Material की परत (Cotting)
होती है और इस पर कोई भी Information Magnetic (Disk) Spot के रूप में Store होती है। इसका आकार कैसेट के समान होता है। टेप Vertical और Horgintal Rows में Device
रहता है। Vertical Columns को Forms तथा Horizontal Rows को Tracks कहते हैं।
यह Serial Access Device है इसकी कार्य प्रणाली Audio Tape के सामान ही होती है। इस पर नया डेटा लिखकर पुराना डेटा मिटाया भी जा सकता है। इनका प्रयोग Magnetic
tap device के माध्यम से किया जाता है। इस Unit में जितनी बिट्स या बाईटस स्टोर होती है। वह टेप में डिवाइड होती है। हर ट्रेक्स में 556 बी.पी.आई. (Bytes Per Inches)
Data Store कर सकते हैं। इसके अलावा 800 B.P.I. 1600 B.P.I.
भी डिवाईस होती है। टेप गति 200 Inches Per Second होती है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
§ Advantages
:-
1. Unlimited
Storage:- Magnetic tape में काफी अधिक मात्रा में डेटा स्टोर कर सकते
हैं।
2. High
data density:- Magnetic Tape में कम जगह में अधिक मात्रा में data
store किये जाते हैं। अर्थात इसमें डेटा रखने की density बहुत अधिक होती है।
3. Lower
Cost:- Magnetic tape अन्य data storage device तुलना में सस्ती होती है।
4. Easy of Holding:-
Magnetic tape को हल्के होने के कारण इसे easily हाथ में लेकर कही भी जा सकता है।
5. Portability:- Magnetic tape आकार
में काफी छोटे होते हैं।
§ Disadvantages:-
1. “No Direct
Access :-
Magnetic tape एक Serial Access
device है। अतः इस पर Store की गयी किसी भी Information को Direct या सीधे Read/Write नहीं किया जाता है।” Magnetic tape एक Sequential Access
device है। इसमें किसी Particular
Block की जानकारी रीड करने के लिये सारे ब्लाक से पास होकर ही जाना पड़ता है। उदा. आडिंयों कैसट्स।
2. Enviromental Problem :-
Magnetic tape को Dust Free
Environment में रखना पड़ता है यदि टेप कहीं से खराव हो गया तो वहां की जानकारी खराव हो जाती है।
3. Indirect Disk :-
इस टेप की जानकारी को direct read नहीं करते है।
2. Magnetic Disk :-
Magnetic disk एक Metal की बनी पतली प्लेट होती है। जिसकी दोनो सतहों पर Magnetic Material Mattel
tape की cutting चढ़ी होती है यह ग्रामोफोम के रिकार्ड की तरह ही होती है। परन्तु यह आकार में छोटी होती है। इस तरह कइ Magnetic disk एवं ऊपर एक समानांतर लगाकर उपयोग की जाती है।
इन डिस्क के समुह को डिस्क रेक कहा जाता है। इस डिस्क रेक की Top Plate upper surface और bottom plate की lower surface को छोड़कर सभी डिस्क में दोनों जगहों पर जानकारी स्टोर की जाती है। प्रत्येक डिस्क बहुत से ट्रेक्स में divided रहती है। और ये ट्रेक्स बहुत से सेक्टर में विभाजित रहते है। इसमें प्रत्येक डिस्क की सतह पर डेटा को रीड/राईड करने के लिये Read
and Write Heads लगे रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं:-
1. Moving
Heads :- इस सिस्टम में हैडस एक पर लगे होते हैं। जो प्रत्येक डिस्क
की सतह पर उपस्थित प्रत्येक ट्रेक्स पर जाकर रीड/राईड करते हैं।
2. Fixed
Head :- प्रत्येक डिस्क की सतह पर उस प्रत्येक ट्रेक्स को रीड/राईट करने के लिये अलग-अलग रीड/राईड हैडस लगे होते हैं।
Ø Features
of Magnetic Disk:-
1. Magnetic
disk एक direct access (R/W) है एक साथ ही इसके
द्वारा Serial information भी access की
जा सकती है।
2. Magnetic
disk का access time अर्थात R/W करने में बहुत कम होता है।
3. Magnetic
disk का Data Density (घनत्व) बहुत अधिक होता है। बहुत कम जगह में अधिक डेटा स्टोर किया जा सकता है।
4. इसमें
किसी भी जानकारी को मिटाकर नयी जानकारी डाली जा सकती है।
5. Magnetic
tape की तुलना में सस्ती है।
6. Easy handling
रखरखाव में आसान होती है।
Ø Type of Magnetic disk
1. Hard Disk :-
“यह एक बहुत अधिक क्षमता वाली Magnetic Disk होती है। जिसमें बहुत अधिक मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सकता है। इसमें सामान्यता एक से अधिक डिस्क एक पूर्णतः बड़े बाक्स में रखी जाती है। जिससे उनमें डस्क या इनवायरमेंट का प्रभाव नही हो पाता। वर्तमान में इसमें 2 G.B. से लेकर 40 G.B. तक उपलब्ध है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
Computer में सी.पी.यु. में उपर की और एक या दो डिवाईस होते हैं। जिसे HDD
कहा जाता है विभिन्न प्रकार की Magnetic Disk के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं।
A. Fixed Hard
disk
B. Removable
Hard disk
C. Winchester
Hard disk
D. Multi
Disk Memory
A. Fixed Hard Disk :-
इसका प्रयोग Micro Computer में अधिक होता है ये सामान्यतः
3.5 इंच तथा 5.25 इंच चैड़ाई की जाती है। तथा इन्हें बार-बार निकाला जा सकता है। इनकी क्षमता 20 M.B. 30
MB, 80MB, 120MB, 200MB, 300MB, 600MB, आदि होती है।
B. Removable Hard disk :-
यह Computer से निकालकर बार-बार पुनः लगायी जा सकने योग्य हार्ड
डिस्क होती है इसका प्रयोग Mainframe Computer में होता है।
C. Winchester Disk
:-
इन्हे धूल या बाहरी कणों से बचाने के लिये एअर प्रुफ जगह में रखा जाता है। इन्हे चलाने के लिए Winchester Disk Drive
की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग मिनी या मेनफ्रेम कम्प्युटर में किया जा सकता है। जहां एक ही Winchester Disk से लगातार कार्य किया जाता है।
D. Multi Disk Memory :-
इसमें एक ही अक्ष पर कई डिस्क लगी होती है प्रथम व अंतिम डिस्क को छोड़कर प्रत्येक डिस्क की दोनो सतहों पर डेटा रीड/राईट किया जा सकता है। प्रत्येक डिस्क की सतह के लिये प्रथक- प्रथक रीड/राईट हेड होते हैं। जो एक ही भुजा से जुड़े होते हैं। मल्टी डिस्क प्रणाली में प्रथम व अंतिम डिस्क की बाहरी सतह पर डेटा नहीं लिखा जाता है। इसमें डेटा रीड/राईट करते समय में ही अधिक डेटा पढा या लिखा जाता है। इस प्रकार इस प्रणाली में उच्च संग्रहण क्षमता के साथ ही उच्च लेखन व पढने की गति भी प्राप्त की जा सकती है इसका प्रयोग Mainframe
Computer में होता है।
2. Floppy Disk :-
इस पर डेटा स्टोर कर आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसमें एक मैगनेटिक डिस्क होती है। जो कि एक प्लास्टिक कवर से ढकी होती है यह कवर डिस्क को धुल व वातारवरण के प्रभाव से बचाता है।
यह एक प्लास्टिक की लचीली डिस्क होती है। जिस पर Magnetic Material की Cotting होती है। एवं इसकी कास्ट भी कम होती है। यह डिस्क एक कवर से ढकी रहती है जो कि डस्क से डिस्क की सुरक्षा करता है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
डिस्क जिस कवर से ढकी रहती है। वह एक जगह से कटा रहता है जहां की डिस्कउ सरफेस दिखाई देता है इसी जगह से डिस्क में जानकारी रीड/राईट हेडस के द्वारा डेटा रिवाईस किया जाता है । सामान्सतः प्रयोग में आने वाली फ्लापी निम्न प्रकार की होती।
क्र. |
आकार |
संचयी क्षमता |
तकनीक नाम |
1 |
5.25’’ |
360 KB |
SSDD (Single sided double density) |
2 |
5.25’’ |
1.2 MB
|
DSDD (Double sided Double density) |
3 |
5.50’’ |
720 KB
|
SSDD (Single sided double density) |
4 |
3.50’’ |
1.44
MB |
DSDD (Double Sided Double density) |
Floppy Disk:- 5.25 & 3.5 ‘‘आकार की जाती है। जिन्हे क्रमश: डिस्क मेन डिस्क माईको डिस्क के नाम से जानी जाती है। सभी साईज में एक या दोनों सतहो पर रीड/राईड योग्य फ्लापी होती है।
3. Optical disk :-
Optical disk वास्तव में प्लास्टिक की एक गोल डिस्क होती है। जिससे लेजर रेस की सहायता से डेटा रीड/राईट किया जाता है। वर्तमान में आपटिकल डिस्क के रूप में सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली डिस्क काम्पेक्ट डिस्क (सी.डी.) है इंस पर बहुत कम जगह में बहुत अधिक डेटा स्टोर किया जा सकता है।
वर्तमान में लगभग एक सीडी पर 700 एम.बी. डेटा स्टोर किया जा सकता है। इस पर स्टोर किया गया डेटा स्थाई रूप से स्टोर रहता है। जिसे सामान्यतः परिवर्तित नही किया जा सकता है।
इसमें स्टोर किये जाने वाले डेटा को बायनरी में बदलकर लेजर रेस को Modulate करके प्लाटर की सतह पर रिकार्ड कर लिया जाता है। इस डेटा को पुनः लेजर रेस द्वारा ही पढा जाता है। कम स्थान पर अधिक डेटा स्टोर करने के कारण ही इसे काम्पेक्ट डिस्क कहते है। इस डिस्क का प्रयोग केवल एक बार रिकार्ड करने के लिये किया जाता है। अतः यह रोम के समान होने से सीडी रोम भी कहलाती है। इसकी संग्रह क्षमता अत्यधिक होती है। परन्तु यह मंहगी तकनीक है।
![]() |
fundamental-of-computer-unit-II |
0 comments:
Post a Comment