धनतेरस क्यों मनाते हैं, क्या है धनतेरस की कहानी जानें
धनतेरस क्यों मनाया जाता है?
दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की आध्यात्मिक विजय का प्रतीक है। यह हिंदू चंद्र-सौर महीनों अश्विन और कार्तिक के दौरान मनाया जाता है। धनतेरस या धनत्रयोदशी से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होने वाला यह उत्सव आमतौर पर पाँच या छह दिनों तक चलता है।
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धनतेरस क्यों मनाते हैं, क्या है धनतेरस की कहानी जानें |
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने
वाला धनतेरस, नई शुरुआत करने, सोना-चाँदी, नए बर्तन और अन्य घरेलू
सामान खरीदने के लिए एक शुभ दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर
खरीदी गई वस्तुएँ भविष्य में कई गुना बढ़ जाती हैं। इस दिन, धन और समृद्धि का
आशीर्वाद पाने के लिए, धन के देवता भगवान कुबेर
के साथ भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की
पूजा की जाती है।
धनतेरस की कहानी क्या है?
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को
धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि
अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इस वजह से इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि के नाम से
ही जाना जाता है। भगवान धन्वंतरि के अलावा इस दिन माता लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और
मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है। इस दिन दीपावली का पर्व शुरू हो
जाता है और इस दिन सोना-चांदी या नए बर्तन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। आइए
जानते हैं धनतेरस क्यों मनाया जाता है और इसकी कहानी क्या है।
भगवान धनवंतरि ने चिकित्सान विज्ञान का प्रचार भी किया था
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन
माना जाता है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और उन्होंने
ही विश्व में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया था। इस दिन घर के द्वार
पर तीन दीपक जलाने की प्रथा है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है - धन और तेरस, जिसका अर्थ है तेरह गुना
धन। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण ही वैद्य समुदाय इस दिन को धन्वंतरि
जयंती के रूप में मनाता है।
क्यों मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान
भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस तिथि को भगवान धन्वंतरि
समुद्र से निकले, वह कार्तिक मास के कृष्ण
पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए
इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान
का अंश माना जाता है और इन्होंने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार
और प्रसार किया। भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से निकली
थीं इसलिए उस दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से आरोग्य
सुख की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की एक पौराणिक कथा
एक बार, मृत्यु के देवता यमराज ने अपने दूतों से पूछा, "क्या तुम्हें कभी किसी
मनुष्य का प्राण लेते समय दया आती है?" दूतों ने उत्तर दिया, "नहीं, महाराज, हम तो बस आपके आदेश का
पालन करते हैं।" यमराज ने फिर पूछा, "बेझिझक मुझे बताओ कि क्या तुम्हें कभी किसी
मनुष्य का प्राण लेते समय दया आई है।" दूतों में से एक ने कहा, "एक बार एक ऐसी घटना घटी
जिसने मेरा हृदय द्रवित कर दिया।" एक दिन, हंस नाम का एक राजा शिकार करने गया और जंगल में रास्ता भटक
गया। भटकते हुए, वह एक दूसरे राजा के
राज्यक्षेत्र में पहुँच गया। वहाँ, हेमा नाम के एक राजा ने पड़ोसी राजा का आदरपूर्वक स्वागत
किया। उसी दिन, राजा की पत्नी ने एक
पुत्र को जन्म दिया।
ज्योतिषाचार्यों की भविष्यवाणी
ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर बताया कि
इस बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस
बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की
परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर
था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को
देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की
मृत्यु हो गई। तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पसीज
गया था। सारी बात सुनने के बाद यमराज बोले, क्या करें, यह तो प्रकृति का नियम है और यह कार्य मर्यादा में रहकर ही
करना होगा।
यमराज ने बताया उपाय
यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा
जा सके। तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना और
दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान
धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।
धनतेरस पर किसकी पूजा की जाती है?
भगवान कुबेर के साथ भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और भगवान
धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
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धनतेरस क्यों मनाते हैं, क्या है धनतेरस की कहानी जानें |
धनतेरस पर नए बर्तन क्यों खरीदे जाते हैं?
भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान अपने एक
हाथ में अमृत कलश लेकर पैदा हुए थे, इसलिए इस शुभ दिन पर नए बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई।
धनतेरस: अनुष्ठान
धनतेरस की शाम देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए
सबसे शुभ समय माना जाता है। सूर्यास्त के बाद, देवी के सम्मान में लक्ष्मी पूजा की जाती है। धनतेरस कथा, एक पवित्र कथा जो इस दिन
की किंवदंतियों और अर्थ से संबंधित है, का पाठ किया जाता है और पूजा के बाद, देवी लक्ष्मी के स्वागत
के लिए घर के दरवाजों को सजाने के लिए तेल के दीपक जलाए जाते हैं।
शाम के समय घर के प्रवेश द्वार पर देवी लक्ष्मी
की छवि बनाने के लिए सिंदूर और चावल के आटे का उपयोग करके रंगोली बनाई जाती है।
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